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मुग़लकाल का इतिहास - शाहजहाँ तथा औरंगजेब


 मुग़लकाल का इतिहास 


शाहजहाँ – शाहजहाँ का जन्म लाहौर में 1592 ई. को मारवाड़ के राजा उदयसिंह की पुत्री जगत गुसाई के गर्भ से हुआ. 1628 ई. में आगरा के राजसिंहासन पर उसका राज्यारोहण हुआ. शाहजहाँ का विवाह आसफ खां की पुत्री अर्जुमंद बानू बेगम से हुआ. विवाह के पश्चात शाहजहाँ ने उसे मुमताज महल की उपाधि से अलंकृत किया.

शाहजहाँ ने दक्षिण भारत में सर्वप्रथम अहमदनगर पर आक्रमण किया तथा 1633 ई. में उसने अहमदनगर को मुग़ल साम्राज्य में विलीन कर दिया. शाहजहाँ के कूटनीतिक प्रयासों से 1639 ई. में कंधार पुनः मुगलों के अधिकार में आ गया था. शाहजहाँ ने 1646 ई. के मध्य एशिया की प्राप्ति का प्रयत्न किया परन्तु अपयश व विफलता ही उसके हाथ लगी.
शाहजहाँ के चार पुत्र थे – दारा, शुजा, औरंगजेब व मुराद. इन सबमे से शाहजहाँ ने अपने बड़े पुत्र दारा को उत्तराधिकारी बनाने का फैसला किया, लेकिन शाहजहाँ के शासन के अंतिम दिनों में उसके चारो पुत्रों मर संघर्ष शुरू हो गया जिसमे औरंगजेब ने अपने पिता को कैद कर लिया तथा अपने भाईयों को परास्त कर सत्ता का अपना अधिकार कर लिया. 1666 ई. में शाहजहाँ की आगरा के किले में मृत्यु हुयी. उसके द्वारा बनाई गई इमारतों में आगरा का ताज महल तथा दिल्ली का लालकिला प्रमुख है. उसका शासनकाल मुगलकाल का स्वर्णका

औरंगजेब (1658 ई. 1707 ई.) – मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेव का जन्म 1618 ई. में उज्जैन के निकट दोहद
नामक स्थान पर हुआ था. उत्तराधिकारी युध्द में विजय प्राप्त करने के पश्चात् 21 जुलाई 1658 ई. को औरंगजेब आगरा के सिंहासन पर बैठा. सम्राट बनने के उपरान्त औरंगजेब ने जनता के आर्थिक कष्टों के निवारण हेतु राहदारी (आंतरिक पारगमन शुल्क) और पानदारी (व्यापारिक चुन्गियां) आदि प्रमुख ‘आबवाबों’ (स्थानीय कर) को समाप्त कर दिया था.

1666 ई. में औरंगजेब क निर्देश पर शाईस्ता खां ने पुर्तगालियों को नियंत्रित करते हुए सोनद्वीप (बंगाल की खाड़ी में स्थित एक द्वीप) पर अधिकार कर लिया 1689 ई. को शम्भाजी (द्वितीय मराठा छत्रपति) का कत्ल करके औरंगजेब ने शिवाजी द्वारा स्थापित मराठा राज्य को मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया. इस प्रकार 1689 ई. तक मुग़ल साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था, लेकिन निरंतर भागदौड़ व युध्द के कारण वह 1705 ई. में बीमार पद गया अंततः 1707 में उसकी मृत्यु हो गयी. उसके शासनकाल में दरबार में नृत्य व संगीत बंद कर दिया गया था. उसने हिन्दुओ पर तीर्थ कर लगाया तथा सती-प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाया उसके शासनकाल में 1668 ई. से हिन्दू त्यौहारों को मनाये जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया इसके अतिरिक्त उसने हिन्दुओं पर पुनः जजिया कर लगाया तथा सिक्खों के नवें गुरु की हत्या करवाई.

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मुगलकाल का इतिहास - अकबर, जहांगीर तथा नूरजहाँ


मुगलकाल का इतिहास 


अकबर – भारतीय इतिहास में अकबर महान शासकों में स्थान रखता है उसका जन्म 1542 को अमरकोट के राजा वीरसाल के महल में हुआ. हुमायूं की मृत्यु के पश्चात् 1556 में उसे दिल्ली की गद्दी पर बैठाकर उसका राज्याभिषेक किया गया. बैरमखां उसका संरक्षक था. 1556 में पानीपत की द्वितीय लड़ाई में उसने हेमू को परास्त किया.
1556 से 1560 की अवधि बैरमखां के प्रभुत्व का समय था, जबकि 1560 से 1564 तक पर्दा सरकार थी. 1564 के बाद ही अकबर सत्ता का सम्पूर्ण उपयोग करने की स्थिति में आ पाया उसने 1563 में हिन्दुओं पर से तीर्थ यात्रा कर हटाया.

1564 में उसने हिन्दुओं पर से जजिया कर हटाकर एतिहासिक कार्य किया. अकबर ने सहिष्णु धार्मिक नीति को चलाया. 1575 में इबादतखाना की स्थापना की, जहाँ धार्मिक वाद-विवाद आयोजित किया जाता था. 1576 में उसके नवरत्न में से एक मानसिंह ने हल्दी घाटी के मैदान में मेवाड़ के महाराणा प्रताप को परास्त किया. 1582 में अकबर ने ‘दींन-ए-इलाही’ धर्म चलाया. 1601 में अकबर की अंतिम विजय असीरगढ़ पर थी. 1605 में उसकी मृत्यु हो गयी. अकबर के दरबार में कुल 9 रत्न थे जो की उसके दरबार को सुशोभित करते थे – बीरबल, अबुल फजल, टोडरमल, फैजी, भगवानदास, राजा मानसिंह, अब्दुर्रहीम खानखाना, हकीम हकाम व मुल्ला दो प्याजा ये सभी अकबर के 9 रत्न थे.

जहांगीर – जहांगीर का जन्म 1569 में फतेहपुर सीकरी में हुआ था. इसकी माँ जयपुर की राजकुमारी मरीयम थी. अकबर की म्रत्यु के पूर्व ही 1599 में जहांगीर (पारिवारिक नाम सलीम) ने उसके खिलाफ विद्रोह कर दिया इसके विद्रोह काल में अकबर ने सलीम के पुत्र खुसरो को उतराधिकारी बनाने का निश्चय किया, परन्तु 1604 में सलीम को क्षमा कर दिया गया. अक्टूबर 1605 में अकबर की मृत्यु के पश्चात सलीम गद्दी पर बैठा और नूरदीन मुहम्मद जन्हागीर ने गाजी की उपाधि धारण की. जहाँगीर द्वारा यमुना के किनारे पर एक स्थान से आगरा क्किला के शाह्बुर्ज तक घंटियाँ लगी हुई एक स्वर्ण जंजीर लगा दी जिससे न्याय प्रार्थी घंटी बजाकर सीधे ही सम्राट से न्याय याचना कर सकता था. जहांगीर के पुत्र खुसरो द्वारा विद्रोह करने व सिक्खों के गुरु अर्जुनदेव द्वारा आशीर्वाद दिए जाने पर कुपित होकर जहांगीर ने गुरु अर्जुनदेव को कैद कर लिया तथा मृत्यु दंड दे दिया.

नूरजहाँ – नूरजहाँ एक अफगान गियासबेग की पुत्री थी जो अकबर के काल में भारत आया था. जहाँगीर ने 1611 में नूरजहाँ से विवाह किया. नूरजहाँ अनिद्ध सौन्दर्य से युक्त एक मेधावी महिला थी. वह फारसी में पद्य रचना भी करती थी. नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम गुलाब से इत्र निकालने की विधि की आविष्क्त्री मानी जाती हा. नूरजहाँ ने राजदरबार में एक गुट स्थापित कर लिया था इस गुट में जहाँगीर का पुत्र ख़ुर्रम (शाहजहाँ) भी था.
सन 1627 को जहाँगीर की मृत्यु हो गयी उसे लाहौर के निकट दफनाया गया. जहाँगीर के शासनकाल में चित्रकला अपने चरम सीमा पर थी. अंग्रेज यात्री हाकिंस व थामस रो जहाँगीर के दरबार में आये थे.

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मुग़ल वंश - मुगलकाल की शुरुआत - बाबर, हुमायूँ तथा शेरशाह


मुग़ल वंश (1526-1707 ई.)



भारत के इतिहास में मुगलवंश का महत्वपूर्ण स्थान है इसकी स्थापना बाबर के द्वारा की गयी.

बाबर – बाबर का जन्म 1483 में हुआ इसके पिता उम्रशेख मिर्जा फरगना (तुर्किस्तान का एक भाग) के शासक थे उनकी मृत्यु के पश्चात् 1494 में वह फरगना की गद्दी पर बैठा. 1504 में उसने काबुल में अपने को स्थापित किया. 1519 में उसने भारत की तरफ रुख करना शुरू किया. 1526 में पानीपत के प्रथम युध्द में उसने इब्राहिम लोदी को हराया व भारत में मुगलवंश की स्थापना की इस युध्द में पहली बार तोपों का प्रयोग हुआ. बाबर का अगला महत्वपूर्ण युध्द 16 मार्च 1527 को खानवा के मैदान में लड़ा गया जहां राजपूतो की सेना महाराजा संग्राम सिंह के नेतृत्व में पराजित हो गयी 1528 में चंदेरी पर विजय प्राप्त कर मेदिनी राय को हराया. बाबर व अफगानों के बीच 1529 ने घघ्घर का युध्द हुआ, जिसमे बाबर की विजय हुई 1530 में बाबर की मृत्यु हो गयी. उसकी कब्र काबुल में है. उसने अपनी आत्मकथा लिखी है ‘तुजुक-ए-बाबरी’ जो की तुर्की में लिखी गयी है.

हुमायूँ – नसीरूद्दीन मुहम्मद हुमायूं का जन्म 6 मार्च 1508 को काबुल में हुआ था. बाबर की मृत्यु के बाद वह गद्दी पर बैठा.1530 में हुमायूं ने कालिन्जर के किले पर घेरा डाला, परन्तु विजय प्राप्त करने के पूर्व ही घेरा उठा लिया. 1532 में दौरा के युध्द में अफगानों को पराजित किया. जून 1532 में चौसा के नजदीक हुई लड़ाई में शेरशाह ने हुमायूं को बुरी तरह पराजित किया. फिर 1540 में कनौज्ज (बिलग्राम) के युध्द के बाद हुमायूं पराजित हुआ.

इसके पश्चात् हुमायूं को देश छोड़ना पड़ा. बाद में ईरान के शाह की मदद से पुनः हुमायूं अपने खोये राज्य को प्राप्त करने में सफल हो सका. 1555 में उसने दिल्ली पर कब्ज़ा किया सन 1556 को दिल्ली में अपने दीन-ए-पनाह पुस्तकालय की सीढियों से गिर जाने के कारण हुमायूं की मृत्यु हो गयी.

शेरशाह – शेरशाह का जन्म 1472 में हुआ इसके पिता हसन खां सासाराम के जागीरदार थे इसने कुछ समय तक अपने पिता की जागीर की देखरेख में मदद की कुछ दिनों के लिए यह बाबर की सेवा में भी रहा बिहार के नुहानी शासक बहार खां लोहानी की मृत्यु हो गयी तो धीरे-धीरे यहाँ के शासन पर शेरशाह का नियंत्रण हो गया 1534 में शेरशाह ने सूरजगढ़ के युध्द में बंगाल के शासक को पराजित किया. 1938 में रोहतासगढ़ के किले पर अधिकार किया.

1539 में प्रसिध्द चौसा के युद्ध में हुमायूं को पराजित किया. 1540 में अंतिम रूप से कनौज्ज के युध्द में हुमायु को पराजित किया और दिल्ली पर अपना अधिकार कर लिया. 1545 में कालिंजर अभियान के दौरान बारूद में आग लग जाने की वजह से शेरशाह की मृत्यु हो गयी. शेरशाह ने लाहौर से बंगाल तक एक सडक का निर्माण करवाया, जिससे आज जी.टी. रोड कहा जाता जाता है. दिल्ली का पुराना किला, रोहतासगढ़ का किला एवं सासाराम में उसका मकबरा स्थापत्य के बेहतरीन नमूने है. पद्मावत के लेखक मलिक मुहम्मद जायसी इसी समय में थे शेरशाह के बाद उसका पुत्र इस्लामशाह गद्दी पर बैठा, लेकिन कुछ समय बाद 1555 में हुमायु में पुनः दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया.



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विजयनगर साम्राज्य - महान सम्राट कृष्णदेवराय


विजयनगर साम्राज्य

विजयनगर की स्थापना हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाईयों द्वारा 1336 ई. में की गई. स्थापना के बाद से ही विजयनगर व उसके पडौसी राज्य बहमनी का संघर्ष निरंतर चलता रहा.

प्रथम संघर्ष 14वीं शताब्दी के उतरार्ध में बहमनी शासक मोहम्मद प्रथम और विजयनगर के शासको बुक्का प्रथम और हरिहर द्वितीय के बीच हुआ. बुक्का प्रथम पराजित हुआ किन्तु हरिहर द्वितीय ने बहमनी सेनाओ को पराजित किया और विजयनगर की उत्तरी सीमा को कृष्णा नदी तक विस्तृत कर दिया.

14वीं शताब्दी के अंतिम चरण में फिरोजशाह बहमनी ने विजयनगर पर आक्रमण किया और देवराय प्रथम को पराजित कर संधि पर बाध्य किया. कुछ समय पश्चात् देवराय द्वितीय ने बहमनी पर चढ़ाई कर कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया. अहनद प्रथम ने 1425 ई. के बाद विजयनगर की स्थिति को प्रभावित किया और तेलंगना एवं रायचूर दोआब के क्षेत्रों में बहमनी सत्ता को सुद्रढ़ किया.

15वीं शतब्दी के अंतिम चतुर्थांश में महमूद गवां ने बहमनी राज्य की स्थिति को पुनः सर्वोपरि कर दिया. उसकी म्रत्यु के पश्चात् बहमनी का विघटन आरम्भ हो गया. इसका लाभ उठाकर विजयनगर के शासक कृष्णदेवराय (1509-29 ई.) ने विजयनगर का प्रभुत्व स्थापित किया. प्रशिध विदूषक तेनालीराम उन्ही के दरबार में था. 1565 ई. में बहमनी राज्य के प्रमुख घटकों ने एक साथ होकर विजयनगर पर चढ़ाई कर दी और तालीकोटा की लडाई (1565) उसे पराजित कर दिया तथा विजयनगर के साम्राज्य का अंत कर दिया.

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लोदी वंश की स्थापना तथा पतन


सैय्यद वंश

ख़िज्र खां ने सैय्यद वंश की स्थापना की इसने 1414 ई से 1421 तक शासन किया ख़िज्र खां ने न तो कभी शाह की उपाधि धारण की और न ही अपने नाम के सिक्के चलाये
 मुबारकशाह – 1421 -1434 ई –में यह ख़िज्र खां का उत्तराधिकारी था उसने सर्वप्रथम शाह की उपाधि धारण की व अपने नाम के सिक्के चलाये इसके बाद दो शासक मुहम्मदशाह शाह 1434 – 1444 ई और अलाउदीन आलमशाह 1444 -1451 अयोग्य थे अलाउदीन आलमशाह द्वारा अपनी स्वेच्छा से दिल्ली का पद छोड़ देने के बाद 1451 ई में बहलोल लोदी ने उस पर अपना अधिकार कर लिया तथा लोदिवंश की स्थापना की.

लोदी वंश - बहलोल खां 1451 -1489 –बहलोल खां अफगानों की लोदी जाति का था  उसने दिल्ली में प्रथम अफगान साम्राज्य की नीव डाली लगभग 38 वर्ष शासन करने पश्चात् 1489 में उसकी मृत्यु हो गई  
                                                
सिकन्दर लोदी - 1489 -1517 –बहलोल लोदी की मृत्यु के बाद उसका दूसरा पुत्र निजाम खां 17 जुलाई 1489 को सुल्तान सिकन्दर शाह की उपाधि धारण कर सुल्तान घोषित किया गया इसने न्याय प्रबंध करने में विशेष रूचि दिखाई उसने भूमि की माप करायी और उसने आधार पर भूमि क्रर नियत करने का आदेश दिया इसके उसने प्रमाणिक गज चलाया जो प्राय 30 इंच का होता था यह सिकंदरी गज कहलाया उसने 1506 में आगरा नगर का निर्माण करवाया 21 नवम्बर 1517 को उसकी मृत्यु हो गई.

इब्राहीम लोदी (1517-1526 ई.) – सिकंदर की म्रत्यु के पश्चात् उसका ज्येष्ठ पुत्र इब्राहीम लोदी 21 नवम्बर 1517 ई. को आगरा में गद्दी पर बैठा. 20 अप्रैल 1526 ई. को पानीपत के मैदान में उसका बाबर से युध्द हुआ जिसमे इब्राहीम लोदी की हार हुई और लोदी वंश समाप्त हो गया. इस तरह तरह कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का संस्थापक था तथा इब्राहीम लोदी दिल्ली सल्तनत का अंतिम शासक था.

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Neno Technology - नेनो टेक्नोलॉजी की उपयोगिता

अमेरिका के बाजार में पैठ बना लेने के बाद अब नेनो टेक्नोलॉजी के उत्पादों ने अब भारतीय बाजारों पर भी अपना कब्ज़ा करना शुरू कर दिया है । हालांकि भारतीय बाजारों में नैनो टेक्नोलॉजी के उत्पादों की संख्या काफी कम है लेकिन भारतीय  विशेषज्ञ भी अब इस कार्य क्षेत्र में शोध करने के लिए जुट गए है । फ़िलहाल अगर देख जाये तो नेनो टेक्नोलॉजी चिकित्षा से लेकर उद्योग आदि सभी क्षेत्रो में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है ।

चिकित्सा के क्षेत्र में :- 

नेनो टेक्नोलॉजी का वर्तमान समय में सर्वाधिक प्रभाव चिकित्सा क्षेत्र में ही देखने को मिल रहा है । वैज्ञानिक इस तकनीक का उपयोग कर गोल्ड पार्टिकल बैक्टीरिया ट्यूमर सेल्स का निर्माण कर रहे है, जो कैंसर की समूची प्रक्रिया को बदल देगी । इससे ट्यूमर के खतरनाक तत्त्व को ही नष्ट कर दिया जाता है । इसके आलावा विशेषज्ञ ऐसी कलाई घडी के रूप में इस तकनीक के विकास में लगे है, जिसके माध्यम से आप सहज ही अपने शरीर की तमाम बिमारियों का पता सरलता से लगा पाएंगे ।  रोग उत्त्पन्न होते ही उसका पता लग जाने और इलाज हो जाने से व्यक्ति की औसत आयु में वृद्धि होना स्वाभाविक है ।

कंप्यूटर के क्षेत्र में :

- इस पद्धति का प्रभाव कंप्यूटर के क्षेत्र में भी काफो क्रन्तिकारी परिवर्तन लाया है । सुपर कंप्यूटर का नाम तो शायद अपने सुना ही होगा । यह नेनो टेक्नोलॉजी का ही एक अद्भुत परिणाम है । बस इसके लिए आपको कंप्यूटर में कनेक्टर के रूप में नैनोवायर का उपयोग करना होता है । इस वायर के लगते ही कंप्यूटर की मेमोरी १० लाख गुना ज्यादा बाद जाती है । साथ ही इस तकनीक का इस्तेमाल अब कंप्यूटर की चिप के सर्किट निर्माण में भी किया जा रहा है । जिससे की अन्य चिप के मुकाबले इससे अच्छेपरिणाम प्राप्त हो । इस तकनीक के उदय से कंप्यूटर जगत को एक नई गति मिली ।

उद्योग में :- 

इस क्षेत्र में यह तकनीक बहुत ही लाभप्रद है जैसे टिटेनियम डाई ऑक्साइड पेंट । यदि इसे नेनो मटेरियल बनाकर पेंट में मिला दिया जाये तो उसकी चमक और हार्डनेस और भी अधिक बढ़ जाएगी । इस तरह से तैयार पेंट अंता सामान्य पेंट के मुकाबले ज्यादा दिन चलता है । इसके आलावा कपडा उद्योग में भी इस पद्धति का इस्तेमाल कर नैनोबेस्ड क्लोथ्स बनाये जा रहे है । इस तकनीक के उपयोग से तैयार कपडे पसीना आसानी से सोख लेते है । इतना ही नहीं, यह कपडा बाजार में उपलब्ध अन्य कपड़ों के मुकाबले कहि अधिक टिकाऊ है
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नैनो टेक्नोलॉजी क्या है ? यह काम कैसे करती है

नैनो टेक्नोलॉजी 

प्रौद्योगिकी  में  नेनो  टेक्नोलॉजी  को  एक  नए  युग  के  सूत्रपात  के  रूप  में  देखा  जा  रहा   है |  नेनो  टेक्नोलॉजी  अतिसूक्ष्म  दुनिया  है i, जिसका  दायरा  एक  मीटर के  अरबवें  हिस्से  या  उससे  भी  छोटा  है  | चौंकाने  वाली  बात  यह  है  की  जितनी  ज्यादा  यह  सुक्ष्म  या  उतनी  ही  ज्यादा  संभावनाएं  अपने  में  समेटे  हुए  | नेनो  टेक्नोलॉजी  से  बने  अनूठे  उत्पादों  का  दायरा  लगातार  बढ़ाता  जा  रहा  है  |

नेनो  टेक्नोलॉजी  शब्द  की  उत्पत्ति  ग्रीक  भाषा के  शब्द  नेनो  से  हुए  है  जिसका  सीधा  अर्थ  होता  है  बौना  या  शुक्ष्मा  |
यह  नाम  जापान  के  वैज्ञानिक  नौरिया  तनिगुगुची  ने  वर्ष  1976 में  दिया  था | वर्ष  1986 में  नेनो  टेक्नोलॉजी  के  प्रति  वैज्ञानिक  वर्ग  की  रूचि  उस  समय  अचानक  बढ़  गयी  जब  जर्मनी  के  वैज्ञानिक  गार्ड  बिनिग  व्  स्विट्जरलैंड  के  हेनरिच  रोरर  के  संयुक्त  प्रयास  से  तैयार  “स्कैनिंग  टनलिंग  माइक्रोस्कोप ” बना  | यह  वही  माइक्रोस्कोप  था  जिसकी  मदद  से  वैज्ञानिक  पहली  बार  अणु  और  परमाणु  को  सहजता  से  देख  पाए  | इस  अविष्कार  के  लिए  इन  वैज्ञानिकों  को  नोबल  पुरस्कार  से  सम्मानित  भी  किया  गया  था  | 


तो  नेनो  तेचोनोलोग्य  एक  ऐसी  यूनिट  है  जो  एक  मीटर  के  अरब  हिस्से  के  बराबर  होती  है  | 1 से  लेकर  100 नेनो  मीटर  को  ‘नैनोडमैन ’ कहा  जाता  है  | जब  अणु  और  परमाणु  नेनो  स्केटर  को  प्रभाबित  करते  हैं  तो  इनमे  नवीन  बदलाव  होने  आरम्भ  हो  जाते  है  | ये  बदलाव  अद्भुत  होते  है , जिसमे  वस्तु  के  मूल  गुण तक  बदल  जाते  है  | इस  बदलाव   की  तकनीक  को  ही  नेनो  टेक्नोलॉजी  कहा   जाता  है  | 



नेनो  टेक्नोलॉजी  काम  कैसे  करती  है  :-

नेनो  टेक्नोलॉजी  के  तहत  मटेरियल  का  साइज  छोटा  कर  उसे  नेनो  डोमेन  बना  लिया  जाता  है  | ऐसा  करने  पर  उस  पदार्थ  के  गुण  – इलेक्ट्रिकल , मेकेनिकल , थर्मल  ऑप्टिकल   हर  एक  स्तर पर  बदलना  शुरू  हो  जाते  है  | यह  एक  नया  विज्ञानं  है  जो  की  बेहद  आश्चर्यचकित  कर  देने  वाले  परिणाम  देता  है  | जैसे  – जैसे  परमाणु  का साइज  छोटा  होगा  उसके  अंदर  दूसरी  धातुओं  व  पदार्थों  में  आपसी  प्रतिक्रिया  की  क्षमता  बढ़  जाएगी  | 


इस  विशेषता  का  इस्तेमाल  कर  नेनो  मटेरियल  से  एकदम  नया  उत्पाद  आसानी  से  तैयार  किया  जा  सकता  है  | नेनो  मटेरियल  तैयार  करने  के  लिए  हमेशा  दो  पद्धतियों  का  इस्तेमाल  किया  जाता  है  – पहली  बड़े  से  छोटा  करने  की  पद्धति  और  दूसरी  छोटे  से  बड़े  करने  की  तकनीक  | इस  तकनीक  की  मदद  से  एक  आश्चर्य  चकित  कर  देने  वाला  नेनो  मटेरियल  तैयार  किया  जा  सकता  है  |

अगर  देखा  जाए  तो  संसार  की  हर  चीज  का  निर्माण अणु  से  हुआ  है  | हर  वस्तु  की  प्रकृति  अब  अणु  के  साथ  जुडी  विभिन्न  रासायनिक  वस्तुओं  की  प्रकृति  पर  निर्भर  करती  है  | यह  प्रकृति  बार  – बार  बदल  सकती  है , बस  जरुरत  है  तो  आपसी  प्रतिक्रिया  में  कुछ  मामूली  फेरबदल  करने  की  | नेनो  पदार्थ  अणु  से  भी  छोटा  होता  है  इसीलिए  इसकी आकर्षण  क्षमता  बहुत  अधिक  होती  है  | यही  वजह  है  की  नेनो  मटेरियल  बेहद  हलके , मजबूत , पारदर्शी  एवं  अपने  मूल  मटेरियल  से  पूरी  तरह  अलग  होते  है  | एक  नेनो  मीटर  का  साइज  मानव  के  बाल के  50 हजारवें  हिस्से  के  बराबर  होता  है  |
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तुगलक वंश के शासक एवं उनका शासनकाल - गयासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद बिन तुगलक तथा फिरोज तुगलक


मध्यकालीन भारतीय इतिहास
तुगलक वंश

गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325 ई.) - गाजी मलिक अथवा तुगलक गाजी गयासुद्दीन तुगलक का काल समस्याओं से भरा था. तेलंगना के शासक प्रताप रूद्रदेव द्वारा खराज देने से इंकार करने पर अपने पुत्र जौना खां को भेजा. गयासुद्दीन ने स्वयं सैनिक अभियान बंगाल में विद्रोह दमन करने के लिए किया था. दिल्ली वापसी पर स्वागत समारोह में एक लकड़ी के भवन के गिरने से 1325 में उसकी मृत्यु हो गयी.

मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई.) - 1325 में गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जौना खां मुहम्मद बिन तुगलक की उपाधि धारण कर दिल्ली का सुलतान बना. उसने अपनी राजधानी दिल्ली से बदलकर देवगिरी की, लेकिन यह प्रयोग असफल रहा. मुहम्मद बिन तुगलक ने 1330 ई. में सांकेतिक मुद्रा चलाई. इसने मिश्रित कांसे के सिक्के जारी किये, परन्तु लोग इस नए प्रयोग को समझ न सके. 

लोगो ने जाली सिक्के बनाने शुरू कर दिए निराश होकर सुल्तान ने सांकेतिक मुद्रा बंद कर दी. मोरक्को का इब्नबतूता जो लगभग 1333 में भारत आया था उसे सुलतान ने दिल्ली का काजी नियुक्त किया. थट्टा की ओर जाते हुए 20 मार्च 1351 को सुलतान की मृत्यु हो गयी. उसके मरने पर इतिहासकार बंदायूनी ने कहा कि “सुलतान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुलतान से मुक्ति मिल गयी|”

फिरोज तुगलक (1351-1388 ई.) - मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के पश्चात् 1351 ई. में दिल्ली का सुलतान फिरोज तुगलक बना. इसका काल राजनितिक एवं आर्थिक विकेंद्रीकरण का काल था. जहाँ तक हो सका सभी वर्ग के लोगो पर सरकारी नियंत्रण पर ढील दे दी गयी. पहले ब्राम्हाण जजिया कर से मुक्त थे, किन्तु फिरोज तुगलक ने उन पर भी इस कर का विस्तार किया. सुल्तान ने उलेमा की स्वीकृति से सिंचाई कर भी लगाया. 

सुलतान ने कई नहरों का निर्माण करवाया जिसमे हिसार फिरोजा की नहर महत्वपूर्ण थी. फिरोज तुगलक ने भूमि को ठेके पर देने की प्रथा का विस्तार किया. उसने फिरोजाबाद, दिल्ली में कोटला फिरोजशाह, फतेहाबाद, हिसार, जौनपुर और फिरोजपुर आदि नगरों की स्थापना की.

सुलतान ने शारीरिक यातनाओं की प्रथा को समाप्त कर दिया. जियाउद्दीन बरनी तथा शम्से शिराज अफीफ ने अपने ग्रन्थ उसी के संरक्षण में लिखे. सुल्तान ने “फतुहाते-फिरोजशाही” नाम से अपनी आत्मकथा लिखी. 1388 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी.

तुगलक वंश का अंतिम शासक नासिरुद्दीन मुहम्मदशाह था उसने शासनकाल में 1398 में तैमूरलंग ने भारत पर आक्रमण किया था.                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      

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कम्प्यूटर की बूटिंग प्रक्रिया क्या होती है ?

बूटिंग प्रक्रिया
कंप्यूटर के स्टार्ट (start) होने की प्रक्रिया बूटिंग कहलाती है. ऑपरेटिंग सिस्टम डॉस साधारणतः एक डिस्क पर स्टोर रहता है, जो की हार्ड डिस्क या फ्लॉपी डिस्क हो सकती है. यदि आपके पास हार्ड डिस्क मशीन है तो उसमे एक ही बार ऑपरेटिंग सिस्टम डलवा लिया जाता है, इससे आपको कंप्यूटर को बूट कराने के लिए ऑपरेटिंग डिस्क नही लगानी पड़ेगी.

                               यदि हमारे पास हार्ड डिस्क नही है, तो कंप्यूटर को चलाने के लिए हर बार हमें ऑपरेटिंग डिस्क लगानी पड़ेगी. यदि आपके पास दो ड्राइव (drive) है तो आपको ऑपरेटिंग सिस्टम को A में लोड करना होगा. जो डिस्क ड्राइव ऑपरेटिंग सिस्टम को लोड करने के लिए प्रयोग की जाती है, उसे डिफॉल्ट ड्राइव (Default drive) कहते हैं.

                              यदि आपका कंप्यूटर किसी कारणवश रुक जाता है तो आप इसे रीस्टार्ट (Restart) कर सकते हैं लेकिन थोड़ी सी समस्या आते ही कंप्यूटर को रीबूट या रीस्टार्ट करना उचित नही है इससे उस समय आप जिस प्रोग्राम में काम कर रहे हैं. उसका डाटा ख़राब (Damage) हो सकता है. इसलिए रीबूटिंग केवल तभी की जनि चाहिए, जब आपके पास इसके अतिरिक्त कोई विकल्प (Alternate) न रहे.

REBOOTING (रीबूटिंग) 
यदि आप अपने कंप्यूटर को रीबूट करना चाहते हैं, तो आपके पास दो विकल्प हैं 

(1) A Warm Boot                 (2)  A Cold Boot


(1) WARM BOOT (वार्म बूट) -
वार्मबूटिंग के लिए आपको कुछ की (Keys) एक साथ दबानी (press) होगी. कन्ट्रोल  की (Control Key) आल्ट  की (Alt key) तथा डैल  की (DelKey) एक साथ दबानी होगी. जिससे आपकी स्क्रीन साफ हो जाएगी तथा कंप्यूटर रीस्टार्ट हो जायेगा.


(2) COLD BOOT (कोल्ड बूट) -
यदि वार्म बूट से आपकी समस्या पूरी तरह हल नही होती है, तो आपको कोल्ड बूट करना होगा, इसके लिए अपने कंप्यूटर के पॉवर स्विच (power switch) को ऑफ़ (off ) कर दीजिये तथा थोड़ी देर रुकिये तथा फिर power switch को ऑन (On) कर दीजिये






   
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कम्पुटर मेमोरी क्या है ? यह कितने प्रकार की होती है ? - जाने प्राथमिक व द्वितीयक मेमोरी के बारे में विस्तार से

कंप्यूटर मेमोरी

कंप्यूटर मेमोरी में सूचनाये एवं कार्यक्रम संगृहीत किये जाते हैं.  कंप्यूटर मेमोरी  कंप्यूटर का  अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है. वे सभी सूचनाये जो  इनपुट हेतु अवश्यक होती है तथा आवश्यक निर्देशों के बाद प्राप्त मध्यवर्ती एवं अंतिम परिणाम आउटपुट यूनिट में जाने से पूर्व मेमोरी में संगृहीत होते है. मेमोरी CPU से जुडी रहती है. मेमोरी अनेक सेल्स से मिलकर बनी होती है प्रत्येक सेल में एक बिट (0 या 1) स्टोर करने की क्षमता होती है. सेल फ्लिप फ्लॉप के रूप में बनाये जाते हैं, जो ऑन के रूप में 1 तथा ऑफ़ के रूप में 0 संगृहीत करते हैं.

 मेमोरी दो प्रकार की होती है 
(1) प्राथमिक मेमोरी Primary Memory )
(2) द्वितीयक मेमोरी ( Secondary Memory )

(अ) प्राथमिक मेमोरी ( Primary Memory ) – यह कंप्यूटर के CPU का एक आवश्यक भाग है. इसे आंतरिक मेमोरी भी कहते हैं. कंप्यूटर की क्षमता को आंकने में इस आंतरिक मेमोरी की संगृहीत क्षमता का बहुत महत्व होता है. इस मेमोरी से किसी भी सूचना को किसी भी स्थान से प्राप्त किया जा सकता है. प्राथमिक मेमोरी को मेन मेमोरी भी कहा जाता है. कंप्यूटर की मेन मेमोरी में सभी प्रोग्राम डाटा के साथ संगृहीत रहते हैं.

यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है 
(1) रैम ( RAM ) 
(2) रोम ( ROM )

रैम ( RAM ) भी दो टाइप की होती है  स्टेटिक रेम और डायनेमिक रैम
रोम ( ROM ) तीन टाइप की होती है  प्रोम, ईप्रोम और इइप्रोम

(A) RAM (Random Access Memory यदि सूचना को किसी भी पते पर भंडारित किया जा सकता हो एवं किसी भी पते से सीधा पढ़ा जा सकता हो तो इसे रैम ( RAM ) कहते हैं. यह कंप्यूटर का प्रयोग करते समय सबसे अधिक काम में लाई जाने वाली मेमोरी है. कंप्यूटर के बंद किये जाने पर इस मेमोरी में संगृहीत सूचनाये अपने आप नष्ट हो जाती है. इसलिए इस मेमोरी को अस्थाई मेमोरी कहा जाता है. कंप्यूटर में इनपुट की जाने वाली सूचनाये सर्वप्रथम इसी मेमोरी में  संगृहीत होती है.

इसे दो भागों में बाँटा गया है 

स्टेटिक रैम (Static Ram )  यह बायपोलर सेमी कंडक्टर मेमोरी तथा मेटल ऑक्साइड सेमी कंडक्टर से मिलकर बना होता है. यह तीव्र गति से कार्य करने वाला तथा खर्चीला होता है. इसका घनत्व कम होता है.

डायनेमिक रैम ( Dynamic Ram )  यह Mosjet और केपेसिटर्स के द्वारा बना होता है. यह मध्यम गति से कार्य करता है तथा सस्ता होता है, इनमे घनत्व उच्च होता है.



(B) ROM (Read Only Memory इस मेमोरी में सूचनाये स्थाई रूप से संगृहीत होती है. कंप्यूटर निर्माण के समय ही इसमें सूचनाये संगृहीत कर दी जाती है, जिन्हें उपयोगकर्ता सिर्फ पढ़ सकता है, परिवर्तन नहीं कर सकता है. इसमें ऐसी सूचनाये संगृहीत हैं जो कंप्यूटर के परिचालन हेतु आवश्यक होती हैं. ये मेमोरी इलेक्ट्रानिक सर्किट के रूप में होती है कंप्यूटर परिचालन हेतु विशेष प्रोग्राम जिन्हें माइक्रो प्रोग्राम कहते हैं, इसमें संगृहीत होते हैं.

PROM (Programmable Read Only Memory वर्तमान में ऐसी रोम चिप उपलब्ध हैं जिन पर प्रयोगकर्ता आवश्यक विशेष प्रोग्राम अंकित कर सकता है. इसे PROM (Programmable Read Only Memory) कहते हैं. एक बार प्रोग्राम अंकित करने पर वह स्थाई प्रकृति का रोम बन जाता है तथा उसमे परिवर्तन नही किया जा सकता.

EPROM (Erasable Programmable Read Only Memory)  जैसा की PROM में संगृहीत सूचना को परिवर्तित नही किया जा सकता इसलिए उपयोगकर्ता अपनी मर्जी से प्रोग्राम में परिवर्तन नही कर सकता. इसी कमी को दूर करने हेतु वर्तमान में इप्रोम (Erasable Programmable Read Only Memory) चिप उपलब्ध है, जिन पर संगृहीत सूचना को अल्ट्रा वायलेट लाइट द्वारा हटाया जा सकता है इससे मेमोरी स्थान रिक्त हो जाता है जिस पर उपयोगकर्ता अपनी इक्छा के अनुसार पुनः प्रोग्राम अंकित कर सकता है. पुनः ये सूचनाये स्थाई प्रकृति की बन जाती हैं शोध एवं अनुसन्धान कार्यों में इस प्रकार की  मेमोरी का अत्यधिक उपयोग होता है.

EEPROM (Electrically Erasable Programmable Read Only Memory इस प्रोग्राम के तहत निर्माताओं द्वारा चिप्स स्मार्टर का निर्माण किया जा रहा है. कई डिवाइसेस के द्वारा अब इलेक्ट्रिकली इरेजेबल Prom भी कार्य कर रहे हैं, जिन्हें की कुछ ही वोल्टेज द्वारा रिप्रोग्राम किया जाता है इस प्रकार के माईक्रो कंट्रोलर्स का उपयोग मशीन टूल्स के लम्बे समय तक कार्य करने में होता है.



(ब) द्वितीयक मेमोरी (Secondary Memory) - प्राथमिक मेमोरी के अतिरिक्त कंप्यूटर में एक और प्रकार की मेमोरी काम में लाई जाती है जिसे द्वितीयक या सहायक मेमोरी कहते हैं. इस मेमोरी में डाटा अत्यधिक मात्रा में अधिक समय तक संग्रहित किया जा सकता है. 

प्राथमिक मेमोरी की संरचना सेमीकंडक्टर ( अर्ध  चालित ) पर आधारित होती है जो की अत्यधिक लागत वाले होते है. यद्दपि सेमीकंडक्टर आधारित मेमोरी ( प्राथमिक मेमोरी ) अत्यधिक तीव्र गति से कार्य करती है किन्तु अत्यधिक लागत के कारण इसका उपयोग एक सीमा तक ही किया जा सकता है. मंहगी होने के कारण प्राथमिक मेमोरी की प्रति बिट ( Bit ) संग्रहण लागत आधिक आती है. सेकेंडरी मेमोरी कम लागत में अत्यधिक सूचनाओ को संग्रहण एवं संरक्षण कर सकती है. 

वर्तमान में कंप्यूटर के बहुउपयोग को देखते हुए जिसमे प्रोग्राम हेतु बड़ी संख्या में सूचनाओ के संग्रहण की आवश्यकता हो केवल प्राथमिक मेमोरी के संग्रहण के आधार पर कार्य नही हो सकता.
द्वितीयक मेमोरी गति में अपेक्षाकृत धीमी होती है, किन्तु भण्डारण क्षमता आधिक होने के कारण वर्तमान में कंप्यूटर उपयोग में इसकी उपयोगिता बढ़ गई है. 

प्राथमिक मेमोरी द्वारा सीधे उपयोग में ली जाती है, जबकि द्वितीयक मेमोरी का उपयोग प्रोसेसर द्वारा सीधे नही किया जाता है. द्वितीयक मेमोरी की वांछित सूचनाये प्रोसेस के समय पहले मुख्य मेमोरी में हस्तांतरित होती है, जिन्हें प्रोसेसर द्वारा उपयोग किया जाता है. मेग्नेटिक टेप , मेग्नेटिक डिस्क , फ्लोपी डिस्क , सी. डी. , आदि प्रमुख द्वितीयक मेमोरी उपकरण हैं.   

    





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ई-वाणिज्य को लेकर ब्रिक्स देशो का रुख तथा जी.एस.टी. में ई-वाणिज्य


जी.एस.टी. में ई-वाणिज्य

भारतीय उद्योग परिसंघ (सी.आई.आई.) डेलायट की ‘ई-कॉमर्स’ इन इंडिया-ए गेम चेंजर फॉर द इकोनोमी’ शीर्षक में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि ई-वाणिज्य खंड में तेजी से विकास हुआ है, लेकिन कराधान, साजो-सामान, एवं सुविधाओ, भुगतान, इन्टरनेट पहुंच तथा कुशल कार्यबल जैसी कई चुनौतियां भी सामने आयी है.

एक रिसर्च के मुताबिक जीएसटी के क्रियान्वयन से ई-वाणिज्य कारोबार से जुड़े काराधान तथा लाजिस्टिक्स से सम्बध्द विभिन्न मुद्दों के समाधान में मदद मिलेगी. जीएसटी में नियमो को तैयार करते, बनाते समय ई-वाणिज्य सौदों के लिए स्पष्ट परिभाषित नियमो तथा सलाहकार रुख, सरकार के साथ ई-वाणिज्य कम्पनियां दोनों के लिए फायदेमंद होगा. 

इसमें यह भी कहा गया है की समय पर और प्रभावी तरीके से डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया स्टार्टअप इंडिया तथा स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन से ई-वाणिज्य व्यावस्था को ग्रामीण क्षेत्रों में इन्टरनेट की अप्रभावी पहुँच तथा कुशल कार्यबल की कमी से जुडी चुनौतियाँ से पार पाने में मदद मिलेगी. रिपोर्ट में इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए प्रत्यक्ष एवं परोक्ष करके क्षेत्र समेत कई उपायों की सिफारिश की गई है.

ई-वाणिज्य को लेकर ब्रिक्स देशो का रुख

ब्रिक्स के व्यापार मंत्रियो ने अक्टूबर 2016 में ई-वाणिज्य के क्षेत्र में सदस्य देशों के बीच और अधिक सहयोग का आह्वान किया तथा विश्व बाजार में उभरती अर्थव्यवस्थाओ की मजबूत भागीदारी के लिए व्यापार के मार्ग में गैर शुल्क अडचने दूर किये जाने पर बल दिया.

ब्रिक्स व्यापार मंत्रियो ने व्यापार से जुड़े बौद्धिक संपदा अधिकार के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की जरुरत पर बल दिया. पांच सदस्यीय ब्रिक्स समूह ने ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ने ब्रिक्स आईपीआर सहयोग प्राणाली (आईपीआरसीएम) गठित किया है. इसके अलावा आईपीआरसीएम को निर्धारित नियम एवं शर्तों पर काम शुरू करने का निर्देश दिया गया है. साथ ही बेहतर तथा समन्वित तरीके से सहयोग बढाने के प्रयास में तेजी लाने की बात भी कही गई है.

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मॉडेम (Modem) क्या है ? इसका कंप्यूटर में क्या कार्य है ? केश मेमोरी ( Cache Memory ) क्या है यह सबसे तेज क्यों होती है

मॉडेम (Modem)

मॉडूलेशन और डीमॉडूलेशन को मिलाकर व संक्षिप्त करके मॉडेम शब्द का निर्माण हुआ हो जो कंप्यूटर को टेलीफोन लाइन के द्वारा किसी अन्य कंप्यूटर को सूचना भेजने व लेने में मदद करता है.

यह एक ऐसी डिवाइस ( युक्ति ) है जिसका उपयोग सेंडिंग छोर पर डिजिटल सिग्नल को एनालॉग  सिग्नल में (एनालॉग) चैनल जैसे  टेलीफोन लाइन पर भेजने के लिए) व रिसीविंग छोर पर पुनः डिजिटल में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है. यह दो पर्सनल कंप्यूटर को आपस में जोड़ने के लिए उपयोग की जाती है ताकि PCs टेलीफोन लाइन की सहायता से एक दूसरे से कम्यूनिकेट कर सके.


मॉडूलेशन  कंप्यूटर से प्राप्त डिजिटल सिग्नल को एनालॉग सिग्नल जिन्हें टेलेफोन सिस्टम प्राप्त करता है, में बदलने की क्रिया है. कनेक्शन के दूसरे छोर पर एक दूसरा मॉडेम इन सिग्नल को समझकर उन्हें पुनः डिजिटल सिग्नल में परिवर्तित करता है जिन्हें रिसीविंग कंप्यूटर समझ सके. एक मॉडेम कंप्यूटर में इंटरनली इनस्टॉल किया जा सकता है. इस परिस्थिति में यह इंटरनल मॉडेम कहलाता है. इसी प्रकार यह एक एक्सटर्नल डिवाइस भी हो सकता है जो की एक सीरियल केवल की मदद से कंप्यूटर के साथ जुड़ा होता है. नीचे दर्शाया गया चित्र दो कंप्यूटर के बीच मॉडेम की सहयता से कम्युनिकेशन या कनेक्शन बता रहा है. मॉडेम की स्पीड बॉड रेट या bps में मापी जाती है. डायलअप कनेक्टिविटी में मॉडेम की अधिकतम स्पीड 56 kbps हो सकती है.


      मॉडेम की ऑपरेटिंग गति 9600 बड तक होती है ( जबकि टेलेफोन लाइन स्टैण्डर्ड हो ) तथा इसका उपयोग करने के लिए हमारे कंप्यूटर में इससे सम्बंधित उपयुक्त कम्युनिकेशन प्रोग्राम होना आवश्यक है. 



 केश मेमोरी ( Cache Memory )

केश मेमोरी (Cache Memory), वह मेमोरी है जो की मेमोरी प्रोसेसर स्पीड मिस मैच ( Mis Match ) को कम करने के लिए काम में आती है. केश मेमोरी CPU और मेन मेमोरी( Main Memory) के बीच की एक बहुत तेज़ और सूक्ष्म मेमोरी होती है जिसका एक्सेस टाइम CPU की प्रोसेसिंग स्पीड के पास में होता है. यह मेमोरी CPU और मेन मेमोरी के बीच में एक हाई स्पीड बफर (High Speed Buffer) की तरह काम करती है और यह प्रोसेसिंग समय के बहुत एक्टिव डाटा और निर्देशों को कुछ समय तक स्टोर करने के काम आती है क्योंकि केश मेमोरी , मेन मेमोरी (Main Memory) से ज्यादा तेज़ है. इसलिए डाटा और निर्देशों को केश में डालकर प्रोसेसिंग स्पीड को बढाया जा सकता है.


जैसा की हम जानते है की मेन मेमोरी काफी हद तक डिस्क प्रोसेसर स्पीड मिसमेच (Mis Match) को कम करती है क्योंकि CPU के द्वारा डाटा लेने की रफ्तार हाई स्पीड सेकेंडरी स्टोरेज से 100 गुना ज्यादा होती है फिर भी मेन मेमोरी के साथ प्रोसेसर मेमोरी और मेमोरी के बीच में एक से दस गुना स्पीड मिसमेच (Mis Match) हो जाती है जितनी स्पीड में CPU निर्देश को प्रोसेस कर सकता है इसका आशय है कि CPU की प्रोसेसिंग स्पीड उसके डाटा लेने की स्पीड से दस गुना ज्यादा है. 

इसलिए कई स्तिथियों में मेमोरी की धीमी गति के कारण प्रोसेस की कार्यक्षमता कम हो जाती है. स्पष्ट रूप से , प्रोसेसर की कार्य क्षमता को मेमोरी प्रोसेसर मिसमेच (Mis Match) को कम करके बढाया जा सकता है जो की केश मेमोरी को काम लेकर किय जा सकता है.   






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भारत में ई-वाणिज्य का भविष्य एवं भारत सरकार का इसके लिए प्रयास


ई-वाणिज्य : भारत सरकार का प्रयास


केंद्र सरकार ने मार्च, 2016 में ई-कॉमर्स के क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी. सरकार बिजनेस टू बिजनेस (बी2बी) ई-कामर्स में पहले ही 100% एफडीआई की अनुमति दे चुकी है. डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क में कंप्यूटर, टीवी चैनल और अन्य इन्टरनेट एप्लीकेशन शामिल है.

सरकार का उद्देश्य देश में और अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना है. औधोगिक नीति एवं संवर्धन विभाग के दिशा निर्देश में कहा गया है कि माल संगृहीत कर ई-कॉमर्स के जरिये उसकी खुदरा बिक्री के माडल में एफडीआई की अनुमति नही होगी.

गौरतलब है कि वैश्विक ऑनलाइन खुदरा कंपनियों अमेजन और ईबे (e-bay) आदि भारत में ऑनलाइन मार्केट मंच का परिचालन कर रही है इस क्षेत्र में फ्लिफकार्ट और स्नैपडील जैसी घरेलू कंपनियों का निवेश हो रहा है विभिन्न ऑनलाइन रिटेल माडलों में एफडीआई को लेकर अभी तक कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नही था. स्पष्टता लाने के लिए डीआईपीपी ने ई-कॉमर्स को इन्वेंटरी यानी माल का भंडार कर किया जाने वाला ऑनलाइन खुदरा कारोबार और खुदरा कारोबार के लिए ऑनलाइन बाजार का मंच चलाने का माडल के रूप में परिभाषित भी किया है.

मार्केट प्लेस माडल से तात्पर्य किसी ई-कॉमर्स इकाई द्वारा डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क पर आईटी प्लेटफार्म उपलब्ध कराना है इस माडल में ई-कॉमर्स इकाई क्रेता-विक्रेता के बीच केवल संपर्क की भूमिका निभाएगा.

भारत में ई-वाणिज्य का भविष्य

सर्च इंजन गूगल की एक रिपोर्ट के अनुसार ऑनलाइन माध्यम से खरीददारी करने वाले भारतीयों की संख्या बढ़ने से देश में ई-कॉमर्स बाजार से बिकने वाली वस्तुओ का सकल वस्तु मूल्य वस्तु 2020 तक $ 60 अरब हो जाने का अनुमान है. वर्ष 2020 तक ऑनलाइन दुकानदारो की संख्या बढ़कर 17.5 करोड़ हो जाने की उम्मीद है. यह संख्या वर्ष 2025 तक 53 करोड़ में बदल जाने की उम्मीद है. रोजगार का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बनने वाला ई-वाणिज्य भविष्य में 14 लाख नए रोजगार सृजित करेगा.

 
भारतीय डाक का ई-वाणिज्य पर ‘माय स्टाम्प’


भारतीय डाक ने जून 2016 में ई-वाणिज्य पर पहली डाक टिकट ‘माय स्टाम्प’ जारी किया. माय स्टाम्प में ई-वाणिज्य कम्पनी अमेज़न को दर्शाया गया है. डाक विभाग ने यह डाक टिकट अमेजन के साथ भागीदारी के तीन वर्ष पूरे होने पर जारी किया था.

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कम्पुटर ऑपरेटिंग सिस्टम का वर्गीकरण


ऑपरेटिंग सिस्टम का वर्गीकरण

विभिन्न प्रकार के कंप्यूटर सिस्टम को संचालित करने के हेतु विभिन्न सुविधाओं वाले ऑपरेटिंग सिस्टम की आवश्यकता होती है. कंप्यूटर द्वारा डाटा प्रोसेसिंग के तरीकों के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है –

(1) बैच प्रोसेसिंग
(2) मल्टीटास्किंग
(3) ऑन लाइन / रियल टाइम सिस्टम
(4) टाइम शेयरिंग
(5) मल्टी प्रोग्रामिंग
(6) मल्टी प्रोसेसिंग
(7) वितरित डाटा प्रोसेसिंग
(8) ऑफ़ लाइन प्रोसेसिंग

बैच प्रोसेसिंग ( BATCH PROCESSING )  इसका प्रयोग पूर्व में मेनफ्रेम कंप्यूटर में किया जाता था. इसके अंतर्गत डाटा को एक निश्चित समय तक संगृहीत किया जाता है फिर उसे समूह ( बैच ) के रूप में प्रोसेस किया जाता है. इसके अंतर्गत डाटा को पंचकार्ड में सुरक्षित रखा जाता है. पंच कार्ड में रखे डाटा को जॉब कंट्रोल कार्ड के निर्देशों की सहायता से एक निश्चित समय के बाद प्रोसेस किया जाता है. इस ऑपरेटिंग सिस्टम में सी पी यू एवं अन्य इनपुट इकाइयों का समुचित उपयोग नही हो पता था. व्यवसाय में पे रोल आदि तैयार करने हेतु इस ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग किया जाता है – इसके अंतर्गत कर्मचारी के कार्य घंटे आदि का विवरण एक निश्चित समय तक एकत्रित कर फिर उसे एक साथ प्रोसेस किया जा सकता है. पे रोल , बिजली , पानी आदि के बिल तैयार करने हेतु अभी भी यह उपयोगी है. इस ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा कंप्यूटर संसाधनों का समुचित उपयोग नही हो पता है.

मल्टीटास्किंग ( MULTI-TASKING ) – इसके अंतर्गत कंप्यूटर सिस्टम के सभी साधनों का निरंतर एवं प्रभावी उपयोग किया जाता है | इसके अंतर्गत सी पी यू (CPU) इनपुट प्रोसेसिंग एवं आउटपुट हेतु एक कार्य से दुसरे कार्य हस्तांतरित होता रहता है | इससे कंप्यूटर सिस्टम एक साथ कई कार्य कर सकता है जिससे कंप्यूटर साधनों का प्रभावी उपयोग संभव होता है इसके अंतर्गत मेमोरी को कई भागो में बाट दिया जाता है जिससे कई कार्य एक साथ किये जा सकते हैं मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम में दो विधियों का उपयोग किया जाता है –

(A) कॉ-ऑपरेटिव मल्टीटास्किंग - कॉ-ऑपरेटिव मल्टीटास्किंग के अंतर्गत जब यूजर कोई कार्य कर रहा होता है तब कंप्यूटर अन्य कार्य कर रहा होता है, जैसे यूजर टाइप कर रहा  है तथा कंप्यूटर द्वारा प्रिंटिंग का कार्य किया जा रहा है.

(B) प्रि-ऐम्पटिव मल्टीटास्किंग - प्रि-ऐम्पटिव मल्टीटास्किंग के अंतर्गत प्रोग्राम की एक सूची बना ली जाती है तथा उन्हें प्राथमिकता प्रदान कर दी जाती है ऑपरेटिंग सिस्टम क्रियाशील प्रोग्राम को हटाकर उच्च प्राथमिकता वाला कार्य शुरू करवा देता है. इसके द्वारा मल्टी प्रोग्रामिंग भी संभव है जिसमे एक साथ एक से अधिक प्रोग्राम CPU द्वारा प्रोसेस किये जा सकते है.

ऑन लाइन / रियल टाइम सिस्टम - इसके अंतर्गत कंप्यूटर संसाधनों का उपयोग लगतार किया जा सकता है इसके अंतर्गत विभिन्न टर्मिनल्स का उपयोग किया जाता है जो की एक CPU से जुड़े होते है टर्मिनल्स की सहायता से ट्रांजक्शन होते ही उन्हें CPU को प्रेषित कर दिया जाता है जिसकी प्रोसेसिंग हो जाती है टर्मिनल्स का उपयोग डाटा को इनपुट करने के अतिरिक्त पूछताछ के लिए भी किया जा सकता है रेलवे एवं वायुयान आरक्षण, इ बैंकिंग आदि में इस सिस्टम का काफी प्रयोग होता है आने वाले समय में ई-कॉमर्स के विकास के साथ ऑनलाइन ऑपरेटिंग सिस्टम का अधिक उपयोग होगा.

टाइमशेयरिंग – इसके अंतर्गत सभी यूजर को CPU एक निश्चित समय आबंटित कर देता है इससे एक साथ कई यूजर एक ही कंप्यूटर सिस्टम का उपयोग कर सकते है. CPU सभी यूजर के कार्यो को उनको आबंटित समय के अनुसार बारी बारी से संपन्न करता है इसके अंतर्गत भी यूजर टर्मिनल्स का उपयोग करते है. प्रत्येक यूजर का टर्मिनल CPU से जुडा रहता है. इसके अंतर्गत सभी यूजर को CPU इतना थोडा समय आबंटित करता है की सभी यूजर को यह भ्रम रहता है की CPU केवल उनका ही कार्य कर रहा है. CPU की प्रोसेसिंग गति इनपुट आउटपुट इकाईयों से काफी अधिक होने के कारण ऐसा भ्रम होता है.

मल्टीप्रोग्रामिंग – इसके अंतर्गत कंप्यूटर एक साथ कई प्रोग्राम संचालित करता है. कंप्यूटर की मैमोरी में कई प्रोग्राम संगृहीत होते रहते है यद्धपि CPU वास्तविक रूप से एक समय पर एक ही निर्देश को प्रोसेस करता है किन्तु CPU एक प्रोग्राम के निर्देश को प्रोसेस कर दुसरे प्रोग्राम के निर्देश को इतनी तेज़ी से प्रोसेस करता है की यूजर को एसा लगता है की उसके सभी प्रोग्राम एक साथ प्रोसेस किये जा रहे हैं. इसके अंतर्गत CPU एक प्रोग्राम को पूरा प्रोसेस न कर कई प्रोग्राम के निर्देशों को प्रोसेस करता है. इस प्रणाली का उपयोग मिनी कंप्यूटर में काफी किया जाता है.

मल्टी प्रोसेसिंग – इसमें कंप्यूटर सिस्टम के अंतर्गत एक साथ एक से अधिक CPU का उपयोग किया जाता है. इसे पैरेलल प्रोसेसिंग भी कहते हैं मौसम पूर्वानुमान, परमाणु शोध, सिम्युलेसन, इमेज प्रोसेसिंग आदि में जहाँ बहुत बड़ी मात्रा में डाटा की प्रोसेसिंग आवश्यक है वहां एक से अधिक CPU की आवश्यकता होती है. इन सभी CPU को कार्य का बंटवारा कर दिया जाता है. सुपर कंप्यूटर में इसी विधि का उपयोग किया जाता है. मिनी एवं मेनफ्रेम कंप्यूटर में भी इनका उपयोग किया जाने लगा है. ऑपरेटिंग सिस्टम इनपुट , प्रोसेसिंग एवं आउटपुट की सूचीयन का कार्य करता है.

वितरित डाटा प्रोसेसिंग – इसके अंतर्गत एक केन्द्रीय स्थान पर डेटाबेस रखा जाता है किन्तु उनकी प्रोसेसिंग अनेक स्थानों पर की जा सकती है. इसमें कई यूजर एक ही एप्लीकेशन पैकेज का उपयोग करते हैं तथा सभी को डाटा को अपडेट एवं मेनिपुलेट करने का अधिकार होता है. इसके अंतर्गत कई कंप्यूटर का एक नेटवर्क विकसित किया जाता है. इससे डाटा का एक कंप्यूटर से दुसरे कंप्यूटर को आदान प्रदान भी संभव हो जाता है.

ऑफ़ लाइन प्रोसेसिंग – इसके अंतर्गत कंप्यूटर द्वारा डाटा को मेग्नेटिक डिस्क या टेप पर इनपुट किया जाता है. इस डिस्क या टेप की सहायता से फिर CPU द्वारा डाटा को एक साथ प्रोसेस करवाया जाता है. इस प्रक्रिया का उपयोग डाटा को इनपुट करने हेतु किया जाता है. डिस्क या टेप पर इनपुट किये गए डाटा को फिर समूह ( BATCH ) में CPU द्वारा प्रोसेस किया जाता है. मिनी कंप्यूटर का उपयोग ऑफ़ लाइन प्रोसेसिंग हेतु काफी किया जाता है.   
  


  








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