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5 january 2019 Current Affairs With Free PDF

5 january 2019 Current Affairs Video

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भारत में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों का आगमन

भारत में यूरोपीय आगमन 

अंग्रेजों का भारत आगमन - ब्रिटेन के व्यापारियों को भी भारत के साथ व्यापार करने की तीव्र इच्छा थी. इस हेतु 31 दिसंबर 1600 ईसवी को इंग्लैंड के 100 व्यापारियों ने लंदन में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की. इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ ने 15 वर्षों के लिए इस कंपनी को पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने का एक अधिकार प्रदान कर दिया. 1608 ईस्वी में हॉकिंस जहांगीर के दरबार में आया जहांगीर ने उसे सूरत में व्यापारिक फैक्ट्री खोलने की अनुमति दे दी. 1615 ईसवी में टॉमस रो मुगल दरबार में आया इसके प्रयासों से सूरत, आगरा, अहमदाबाद और भाडोंच में कोठियां (फैक्ट्री)  स्थापित करने में सफल हुए. 1617 ईस्वी में मसलीपट्टनम मैं फैक्ट्री कायम की गयी. 1640 में फ्रांसिस ने चंद्रगिरी के राजा से पूर्वी समुद्र तट पर भूमि प्राप्त कर मद्रास की स्थापना की. इस कोठी का नाम फोर्ट सेंट जॉर्ज रखा गया यह मुख्यालय के रूप में सबसे मशहूर व्यापारिक केंद्र बन गया. 


1650 ई. में अंग्रेजों को बंगाल में भी व्यापार करने की अनुमति मिल गई. बंगाल में अंग्रेजी व्यापार ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने देश की सरकार से भी समय-समय पर वांछित सहयोग मिलता रहा. कोलकाता, चेन्नई तथा मुंबई कंपनी के तीन प्रमुख व्यापारिक केंद्र हो गए.

भारत में फ्रांसीसियों का आगमन - भारत में फ्रांसीसी व्यापारी सबसे बाद में आए. सन 1664 में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई. 1669 फ्रांसीसियों ने सूरत में अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित की. उन्होंने भारत के पूर्वी समुद्र तट पर तंजोर के शासक से मद्रास (चेन्नई) के निकट एक साधारण सा गांव प्राप्त किया. यही पर उन्होंने पांडिचेरी की नींव डाली भारत में फ्रांसीसी बस्तियों का संस्थापक फ्रान्कोई मार्टिन था. 1693 ईसवी में डचों ने पांडिचेरी पर अधिकार कर लिया पर 1697 ईस्वी में यह पुनः फ्रांसीसियों के अधिकार में आ गया.
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भारत में यूरोपियों का आगमन - पुर्तगाली तथा डचो का आगमन

भारत में यूरोपियों का आगमन

पुर्तगालियों का भारत में आगमन

पुर्तगाल के वास्कोडिगामा ने 1498 ईस्वी में यूरोप से भारत का एक नया और समुद्री रास्ता ढूंढ निकाला, वह आशा अंतरीप (केक ऑफ गुड होप) होता हुआ 17 मई 1498  ईसवी को भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट पहुंचा. इस तरह सर्वप्रथम भारत में पुर्तगाली पहुंचे. केबैरल ने कालीकट तथा कोचीन में पुर्तगाली कारखाने खोलें. 1502 ईसवी में वास्कोडिगामा पुनः भारत आया और कन्नान्नौर में  एक कारखाने की स्थापना की.

1505 ईसवी में पुर्तगाली पश्चिमी तट पर पहुंच गए समुद्री मार्ग पर पुर्तगालियों का पूर्ण अधिकार हो गया फ्रांसिसको आलमिडा भारत में पहला पुर्तगाली गवर्नर था, वह 1505 से 1509 ईस्वी तक भारत में रहा 1509 में उसकी हत्या कर दी गई फ्रांसिस्को अल्मीडा का उत्तराधिकारी अल्फांसो डी अलबुककर्क था 1509 में वह भारत का गवर्नर नियुक्त किया गया. 1509 से 1515 ईसवी तक रहा. 



इस दौरान पुर्तगाली शक्ति का विस्तार हुआ उसने 1510 ईस्वी में गोवा बंदरगाह पर कब्जा कर लिया और पुर्तगाली साम्राज्य की राजधानी बनाया. 1515 ईसवी में अलबुककर्क की मृत्यु हो गई. उसके उत्तराधिकारियों ने भी उसकी नीति का अनुसरण किया और धीरे-धीरे मालाबार के पश्चिमी तट गोवा, दमन-दीव, सलकोट और बेसिन पर उन्होंने कब्जा कर लिया.

पुर्तगाली भारत में साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे पर सफलता नहीं मिली अंत में उन्हें पास गोवा और दमनदीप के अलावा कुछ नहीं रहा जहां वे 1962 तक रहे.

डचों का आगमन - पुर्तगालियों के बाद हॉलेंड निवासी डच भारत आए 1602 ईसवी में यूनाइटेड डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की उनकी रुचि विशेषता: पूर्वी देशों के मसालों के व्यापार में थी उन्होंने बंगाल बिहार तथा उड़ीसा में व्यापारिक कोठीयां (फैक्ट्री ) खोली. महत्वपूर्ण कोठियां मसलीपट्टनम, आंध्र प्रदेश, पुलिकट, सूरत, चिनसुरा, कासिम बाज़ार, बड़ा नगर, पटना, बालासोर, नागपट्टनम, अहमदाबाद , आगरा और कोचीन में खुली पर धीरे-धीरे अंग्रेजों ने उनके अधिकृत प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया और 1759 ईस्वी तक डचो का प्रभाव समाप्त हो गया.




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जॉर्डन के शाह की भारत यात्रा पर हुए 12 समझौते

जॉर्डन के शाह की भारत यात्रा पर हुए 12 समझौते

जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला द्वितीय की भारत की राजकीय यात्रा के अंतिम दिन 1 मार्च 2018 को दोनों देशों के बीच सामरिक, रणनीतिक और व्यावसायिक संबंधों को मजबूत करने हेतु 12 समझौते किए गए -





सहमति ज्ञापनों समझौतों की सूची निम्न है 

(1) रक्षा सहयोग पर सहमति - ज्ञापन 

(2) कूटनीतिक और सरकारी पासपोर्ट धारकों के लिए वीजा छूट 

(3) सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम 

(4) मानव शक्ति सहयोग समझौता 

(5) स्वास्थ्य एवं औषधि के क्षेत्र में सहयोग के लिए सहमति ज्ञापन 

(6) जॉर्डन में अगली पीढ़ी के उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना के लिए सहमति ज्ञापन 

(7) रॉक फॉस्फेट तथा उर्वरक/एनपीके की दीर्घकालिक सप्लाई के लिए सहमति ज्ञापन 

(8) सीमा शुल्क परस्पर सहायता समझौता 

(9) आगरा और पेट्रा (जॉर्डन) के बीच दोहरा समर्झाता 

(10) आईआईएमसी  तथा  जेएमआई के बीच सहयोग के लिए सहमति ज्ञापन 

(11) प्रसार भारती और जॉर्डन टीवी के बीच सहमति ज्ञापन 

(12) जॉर्डन यूनिवर्सिटी तथा आईसीसीआर के बीच हिंदी पीठ की स्थापना के लिए सहमति ज्ञापन

जॉर्डन के शाह की मुख्य जानकारियां 

अब्दुल्ला II बिन अल हुसैन 1 999 से जॉर्डन के राजा रहे हैं। अब्दुल्ला के मुताबिक, वह मोहम्मद के 41 वें पीढ़ी के प्रत्यक्ष वंशज हैं क्योंकि वह हस्मिथ परिवार से संबंधित हैं - जिन्होंने 1921 से जॉर्डन पर शासन किया है |

जन्म30 जनवरी 1962 (आयु 56 वर्ष), अम्मान, जॉर्डन
पूर्ण नामAbdullah bin Hussein bin Talal bin Abdullah bin Hussein bin Ali
(जानकारी प्राप्ति का स्रोत विकिपीडिया)
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Current Affairs - शहरी विकास कार्यक्रम में सहयोग के लिए जर्मनी से करार एवं मोरक्को के साथ रेलवे में सहयोग समझौते को स्वीकृति


शहरी विकास कार्यक्रम में सहयोग के लिए जर्मनी से करार


नई दिल्ली में 23 फरवरी 2018 को भारत और जर्मनी के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए

इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य टिकाऊ शहरी विकास कार्यक्रम में चयनित और स्मार्ट शहरों में शहरी बुनियादी सेवाओं और आवास की उपलब्धता के लिए उपयुक्त अवधारणाएं विकसित करना तथा उन्हें लागू करना है

जर्मनी के तकनीकी सहयोग के उपायों से एकीकृत योजना किफायती आवास तथा बुनियादी सेवाओं की उपलब्धता के नजरिए से टिकाऊ विकास में सहायता मिलेगी जिससे पानी अपशिष्ट जल और ठोस कचरा प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जा सकेगा


मोरक्को के साथ रेलवे में सहयोग समझौते को स्वीकृति


केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 20 फरवरी 2018 को भारत और मोरक्को के बीच रेलवे क्षेत्र में सहयोग के लिए हुए समझौते को मंजूरी दी गई

इस सहयोग समझौते के तहत प्रशिक्षण व कर्मचारियों का विकास विशेषज्ञ मिशन अनुभव और कर्मचारियों का आदान प्रदान तथा विशेषज्ञों के आदान-प्रदान सहित तकनीकी सहायता का प्रावधान है

रेलवे के विभिन्न क्षेत्रों में दीर्घकालीन सहयोग और साझेदारी विकसित करने के उद्देश्य से सहयोग 
समझौते पर 14 दिसंबर 2017 को हस्ताक्षर किए गए


इजराइल के साथ फिल्मों के निर्माण के समझौते का अनुमोदन


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 20 फरवरी 2018 को भारत और इजराइल के मध्य फिल्म निर्माण से जुड़े समझौते को पूर्वव्यापी मंजूरी प्रदान की गई

इस समझौते पर इजरायल के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किए गए थे

फिल्म सिनेमा समझौते से दोनों देशों के नागरिकों के बीच कला एवं संस्कृति सद्भावना निर्माण तथा बेहतर समझदारी को बढ़ावा मिलेगा और फिल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं को समझने का अवसर प्राप्त होगा


इसके अलावा कलाकारों तकनीकी व गैर तकनीकी लोगों को रोजगार प्राप्त करने में भी सहायता मिलेगी


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आधुनिक भारत का इतिहास - उत्तर मुगल शासक तथा मुग़ल काल का पतन


आधुनिक भारत

उत्तर मुगल शासक


बहादुर शाह प्रथम (1707 1712) :-  उत्तराधिकार के युद्ध में विजय प्राप्त करने के उपरांत औरंगजेब का बड़ा पुत्र मुअज्जम बहादुरशाह के नाम से मुगल सिंहासन पर आसीन हुआ. वह उधार प्रकृति का था, 5 वर्ष तक शासन करने के उपरांत 1412 ईसवी में उसकी मृत्यु हो गई.

जहांदार शाह (1712 से 1713) :-  बहादुर शाह की मृत्यु के उपरांत उसके चार पुत्रों में उत्तराधिकार को लेकर युद्ध हुआ जिसमें उसका बड़ा पुत्र विजय हुआ वह जहांदार शाह के नाम से मुगल सिंहासन पर आसीन हुआ. वह एक अयोग्य एवं लोभी शासक था अतः बाद दीर्घकाल तक शासन ना कर सका 1713 में उसके भतीजे फर्रुखसियर ने उसका वध कर दिया.

फर्रुखसियर (1713 – 1719) :- यह केवल नाम मात्र का एक शासक था, वास्तविक सत्ता उसके प्रधानमंत्री अब्दुल्ला खां तथा प्रधान सेनापति सैयद अली खान के हाथ में रही. कुछ समय बाद सैयद बंधुओं ने मराठाओं के सहयोग से 1719 में फर्रुखसियर का वध करवा दिया तथा उसके स्थान पर रफी-उद-दरजात को मुगल सिंहासन पर बिठाया पर शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गई.

मुहम्मद शाह (1719-1748) :-  1719 ईस्वी में सैयद बंधुओं ने मुहम्मद शाह को मुगल गद्दी पर बिठाया यद्दपि मुहम्मद शाह सैयद बंधुओं के सहयोग से शासक बना किंतु वह शीघ्र ही सैयद बंधुओं के बढ़ते हुए हस्तक्षेप से तंग आ गया अतः सबसे पहले उसने सैयद बंधुओं की शक्ति का अंत किया. इसी के शासनकाल में फारस के शासक नादिरशाह ने 1739 में भारत पर आक्रमण कर दिया. स्वदेश जाते समय वह अपने साथ अपार धन संपत्ति मयूर सिंहासन बा कोहिनूर हीरा भी ले गया.

आलमगीर द्वितीय (1754 से 1758) :-  मुगल शासक आलमगीर द्वितीय नाम मात्र का शासक था. वास्तविक शक्ति वजीर गाजीउद्दीन फिरोज जंग के हाथ में थी. इसके शासनकाल में अहमद शाह अब्दाली का तीसरा आक्रमण हुआ, जिसने दिल्ली व मथुरा को खूब लूटा.



शाह आलम द्वितीय (1758 से 1806) :-  1758 में आलमगीर की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र अलीगौहर शाह आलम द्वितीय के नाम से सिंहासन पर विराजित हुआ. पानीपत का तृतीय युद्ध दक्षिण में अकाल तथा अंग्रेजों के विरुद्ध बक्सर का युद्ध किसके शासनकाल की मुख्य घटनाएं 1806 ईसवी में गुलाम कादर खा ने आलम की हत्या करवा दी.

अकबर द्वितीय (1806 से 1837) :-  आलम शाह द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र अकबर द्वितीय मुगल गद्दी पर आसीन हुआ. वह नाम मात्र का शासक था, इसके शासनकाल में अंग्रेजों की शक्ति में तीव्र गति से वृद्धि हुई 1837 ईस्वी में अकबर द्वितीय की मृत्यु हो गई.

बहादुर शाह द्वितीय जफर (1837 से 1857) :-  अकबर द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र बहादुर शाह द्वितीय मुगल शासन की बागडोर को संभालने के लिए सिंहासन पर आसीन हुआ. वह अंतिम मुगल सम्राट था 18 57 ईसवी का विद्रोह इस के शासन काल की मुख्य घटना थी इस क्रांति का नेतृत्व बहादुर शाह जफर ने किया बाद में इसे बंदी बनाकर रंगून भेज दिया गया जहां 1862 में उसकी मृत्यु हो गई इसकी मृत्यु के पश्चात ही मुगल साम्राज्य का पूर्णता अंत हो गया.


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जर्मनी के राष्ट्रपति की भारत यात्रा का उद्देश्य एवं महत्व


जर्मनी के राष्ट्रपति की भारत यात्रा



जर्मनी के राष्ट्रपति डॉ. फ्रेंक वाल्टर श्टाइन्मायर 22-25 मार्च, 2018 के मध्य भारत की अधिकारिक यात्रा पर रहे. इस यात्रा पर उनके साथ सीईओ प्रतिनिधिमंडल, भारतविदों और मिडिया का एक प्रतिनिधिमंडल भी आया इस यात्रा के दौरान जर्मनी के राष्ट्रपति द्वारा भारतीय नेतृत्व के साथ द्विपक्षीय संबंधों, क्षेत्रीय और अन्तराष्ट्रीय महत्व के विषयों पर चर्चा की गयी.

जर्मनी के राष्ट्रपति के रूप में यह श्टाइन्मायर की पहली भारत यात्रा थी. उनसे पहले जर्मनी के भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉकिम गौक ने फरबरी, 2014 में भारत की यात्रा की थी. श्टाइन्मायर की यह यात्रा काफी महत्वपूर्ण थी, क्योकि 14 मार्च, 2018 को जर्मनी में नई सरकार के शपथ लेने के बाद यह राष्ट्रपति की पहली यात्रा थी. इस यात्रा के दौरान जर्मन राष्ट्रपति बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, सारनाथ दीनदयाल संकुल भी गये. इसके अलावा गंगा घाटों की सैर की और दशाश्व्मेघ घाट पर गंगा आरती में भाग लिया.

श्टाइन्मायर की पहले की यात्राएँ

डॉ. श्टाइन्मायर विदेश मंत्री और जर्मनी के वाइस – चांसलर के रूप में कई बार भारत का दौरा कर चुके है. वर्ष 2015 में वह चांसलर एंजेला मर्केल के साथ तीसरे अंतर्सरकारी परामर्श में भाग लेने आये थे, इससे पहले डॉ. श्टाइन्मायर सितम्बर, 2014 और नवम्बर, 2008 में भी भारत आ चुके है.

यात्रा का उद्देश्य

जर्मन राष्ट्रपति की इस यात्रा का उद्देश्य द्विपक्षीय सम्बन्ध, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर चर्चा से दोनों देशो के द्विपक्षीय संबंधों को सशक्त बनाने के उपाय सुझाना था. जर्मनी के साथ भारत के सम्बन्ध द्विपक्षीय और वैश्विक सन्दर्भ में सबसे महत्वपूर्ण सम्बन्धों में से एक है. इसके अलावा जर्मनी भारत में सातवाँ सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है और यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार भी है.

वर्ष 2000 में सामरिक भागीदारी स्थापित होने के बाद से दोनों पक्षों की सरकारों द्वारा इस सम्बन्ध को व्यापक और गहरा करने का प्रयास किया जाता रहा है. ये सम्बन्ध शिखर स्तर के द्विवार्षिक अंतर्सरकारी परामर्श (आईसीजी) में अभिव्यक्त है. कुछ चयनित देशों के साथ ही जर्मनी की भी भारत के साथ सामरिक भागीदारी (Stretagic Partnership) है. आईसीजी के चौथे संस्करण (जो 30 मई 2017 को बर्लिन में आयोजित हुआ) में विभिन्न क्षेत्रों में 12 सहयोग दस्तावेजो पर हस्ताक्षर किये गये थे भारत विश्व के उन चुनिन्दा देशों में से एक है जिनके साथ जर्मनी ने इस प्रकार का वार्ता तंत्र स्थापित किया हुआ है.

जर्मनी, यूरोप (लगभग 82.7 मिलियन-2016) में सबसे अधिक आबादी वाला देश है और महाद्वीप के केंद्र में स्थित होने के कारण स्वाभाविक रूप से यहपूर्वी और पश्चिमी यूरोप के बीच एक पुल की भूमिका निभाता है।यह औद्योगिक रूप से एक उन्नत राष्ट्र है और आधुनिक तकनीकी जानकारी के संयोजन के साथ एक विनिर्माण केंद्र बन गया है।यह अनुसंधान एवंविकासतथा कौशल काएक वैश्विक केंद्र और धुरी है।जर्मनी की ऐतिहासिक उथल-पुथल के बावजूद, यह सफलतापूर्वक यूरोप में विकास के वाहक के रूप में उभरा है।

भारत-जर्मनी में मजबूत द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग रहा है। जर्मनी यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और विश्व में छठा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। जर्मनी के वैश्विक व्यापार में भारत को24वें स्थान पर रखा गया था।जर्मन विशेषज्ञता नवीकरणीय ऊर्जा, कौशल विकास, स्मार्ट सिटी, पानी और अपशिष्ट प्रबंधन, नदियों, रेलवे आदि की सफाईजैसे अधिकांश क्षेत्रों मेंभारत की मौजूदा प्राथमिकताओं से मेल खाती हैं,जो मूर्त, परिणाम-उन्मुख परियोजनाओ के लिए सहयोगी हो सकती हैं।

2016-17 में द्विपक्षीय व्यापार 18.76 अरब अमेरिकी डॉलर का था। 2016-17 में, भारत ने जर्मनीको 7.18 अरब अमरीकी डॉलर के सामान का निर्यात किया और जर्मनी से 11.58 अरब अमरीकी डॉलर की वस्तुओं का आयात किया गया।जर्मनी भारत में निवेश करने वाले सबसे बड़ेविदेशी प्रत्यक्ष निवेशकों में सातवें स्थान पर है। अप्रैल 2000 से दिसंबर 2017 तक भारत में संचयी जर्मन एफडीआई 10.71 अरब डॉलर या कुल एफडीआई का 2.91% है।

जर्मनी में 15,000 से अधिक भारतीय छात्र हैं और करीब 800 जर्मन छात्र भारत में पढ़ रहे हैं या अपनी इंटर्नशिप कर रहे हैं। (2017)।जर्मनी में भारतीय नागरिकों की संख्या 108,000 है (जर्मनी का आंतरिक मंत्रालय, 2017) और जर्मनी में पीआईओ की संख्या लगभग 73,000 है, इनमेंमुख्य रूप से तकनीशियन, छोटे व्यवसायी/व्यापारी और नर्सें शामिल हैं।










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UPSC CSE (IAS) मुख्य परीक्षा में प्रभावी उत्तर कैसे लिखें ?

मुख्य परीक्षा में प्रभावी उत्तर कैसे लिखें ?

UPSC परीक्षा के लिए एक सीमित अवधि में संरचित और स्पष्ट सामग्री को ढूंढना, यह एक ऐसा कार्य है जो बहुत ही कठिन है। सटीक होने के लिए आप इतना विशाल पाठ्यक्रम को एक सीमित समय पर पूरा नहीं ज्ञात कर सकते हैं।



मन की ही समझदारी और सहजता आपकी परीक्षा हॉल में, एक सटीक उत्तर लिखने में आपकी मदद कर सकते हैं। इस लेख में, UPSC सिविल परीक्षा में प्रभावी उत्तर लिखने और मानसिक रूप से तैयार करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर बात करेंगे।

IAS मुख्य परीक्षा में प्रभावी उत्तर लिखने के लिए कुछ स्टडी टिप्स

अपने IAS परीक्षा में अच्छी सामग्री के निर्माण के लिए कुछ चीजों पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रुरत है। तो चलिए कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर नज़र डालते हैं “समाचार” पढ़ना और “दुनिया के मामलों” में विशाल ज्ञान प्राप्त करने के अलावा भी कुछ आवश्यक चीजे है जो आपको एक प्रभावी उत्तर लिखने में आपकी मदद कर सकते हैं।

IAS प्रारंभिक परीक्षा 2018 : फ्री पैकेज

यह पैकेज IAS प्रारंभिक परीक्षा 2018 को ध्यान में रखकर संकलित किया गया है। यह पैकेज अभ्यर्थियों को उचित मार्गदर्शन प्रदान करता है तथा उनको प्रारंभिक परीक्षा के लिए रणनीत बनाने में सहायता प्रदान करता है तथा साथ ही साथ उनके आत्मविश्वास में वृद्धि भी करता है। इस पैकेज में 10 टेस्टों का संकलन किया गया है और प्रत्येक टेस्ट में 100 प्रश्न हैं | इसके लिए आप प्लेस्टोर से Parmanand Divya Jyoti NGO App डाउनलोड कर सकते है जो आपकी स्टडी में मददगार सिध्द होगा.

जानकारी अर्जित करना

एक सटीक उत्तर लिखने के लिए, जानकारी अर्जित करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। गणित सरल रहता है जब तक की आपको उसे हल करने का तरीका मालूम होता है या अगर आपको उसका सही उत्तर नहीं मालूम तो आप इसे सही तरीके से हल नहीं कर सकते हैं। कोई लेखन कौशल या माइंड ट्रिक्स आपको सिविल सेवा परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं करवा सकती है। 

अपने दिमाग को प्रशिक्षित और विकसित करने के लिए विभिन्न पुस्तको को पढ़ने की जरुरत है और उनमे से महत्वपूर्ण विषयो पर नोट बनाने की आवश्यकता है। हर जरुरी चीज़ के नोट्स बनाना एक और महत्वपूर्ण कार्य है जब आप UPSC की तैयारी कर रहे हैं। यह रिविज़न के समय में आपका महवत्पूर्ण समय भी बचाएगा।

स्वस्थ वार्तालाप

कभी-कभी अलग-अलग कारणों के चलते किसी विषय पर आपकी राय पक्षपाती बन जाती है। इस तरह की पक्षपाती राय पर आपको खुले दिमाग के साथ अपने दोस्तों और साथियों के साथ चर्चा करनी चाहिए। यह आपको लगता है कि आपका तर्क अन्य लोगों से अलग है परंतु एक स्वस्थ वार्तालाप से आपके मस्तिष्क में उस तर्क को समाहित करने में मदद करेगा। जो आप कही मिस कर रहे होंगे इससे आपको पता चल सकेगा की आपके पॉइंट्स में जो कमी है उसे कैसे ठीक किया जा सकता है।

स्वयं के शिक्षक बनें

एक अन्य तरीका यह भी है कि आप एक विशेष विषय पर ज्ञान अर्जित कर किसी और व्यक्ति को समझाए, जो उस विषय को समझना चाहता हो और उस विषय पर उसे ज्ञान नहीं।एक तथ्य यह भी है कि आप केवल किसी को तब ही सिखा सकते हैं जब आपको उस विषय से संबंधित पूर्ण जानकारी प्राप्त हो।

अपनी समझ को व्यापक बनाना

एक निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले आप किसी भी पॉइंट पर गहन अध्ययन करें। इसके लिए अधिक से अधिक स्रोत से विषय के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी इकठ्ठा कर उन विषयो पर नोट बना लें। एक सटीक उत्तर लिखने के लिए अपने दिमाग का विस्तार करना एक अच्छा माध्यम है।

मौलिकता और एनॉलिटिक्स की जानकारी

प्रभावी उत्तर के बारे में यह ध्यान रहे कि वे पीस ऑफ केक यानि आसान कार्य नहीं है, उत्तर लिखने के लिए सिर्फ़ बुनयादी ज्ञान प्राप्त होना पर्याप्त नहीं है। अगर आप UPSC के पूर्व प्रश्न-पत्रों को देखेंगे तो आपको मालूम चलेगा कि एक उत्तर के लिए कितनी बुद्धिशीलता और विषयों के विश्लेषण की आवश्यकता होती है।

UPSC CSE मुख्य परीक्षा में उत्तर लिखने के लिए सुझाव

हर एक प्रश्न के लिए उसके सभी तथ्यों और जानकारी का पता कर लेना ही काफी नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात को ध्यान में रखते हुए उत्तर इस प्रकार लिखें कि जैसे वह अपनी मुख्य बात स्पष्ट कर सकें और उत्तर को एक फ्रेम में ढाल सकें। जिससे वह उत्तर पर ध्यान आकर्षित कर सकें। यह एक उत्तर लिखने की सही शैली होती है। उत्तर को आसान सी भाषा, स्पष्ट रूप में लिखना चाहिए। यहां पर ऐसे ही कई अन्य सुझाव दिए गए हैं, जो आपको IAS मुख्य परीक्षा में प्रभावी उत्तर लिखने में आपकी मदद कर सकते हैं। आइए जानते है उन सुझावों को:

पहले 2-3 मिनट में प्रश्न-पत्र को अच्छे से देख लें और उन प्रश्नों का चुनाव करें जो कि आपको आते हो इसे करने के बाद आप उन प्रश्नों को देखें जो अपने पहले छोड़ दिए थे इस बार आप कुछ विश्लेषण कर उन प्रश्नों को हल करने की कोशिश करें।एक उम्मीदवार को अपने प्रवाभी उत्तर के लिए बिंदु प्रारूप अपनाना चाहिए अगर प्रश्न में पैरा प्रारूप की मांग की गई है, तो आपको उत्तर पैरा प्रारूप में ही देना चाहिए।सवाल में उन शब्दों का चुनाव करें जो आपके उत्तर को स्पष्ट करने में मदद कर सके। 

आप एक सरल और स्पष्ट भाषा में, संज्ञा और क्रियाओं का अनावश्यक प्रयोग किए बिना ही अपने उत्तर को पेश करना होगा।आप अपने उत्तर में सब/साइड हैडिंग को शामिल करने के लिए प्रयास करें। “साइड शीर्षक” परीक्षक की दृष्टि को केंद्रित करने में मदद कर सकेगा जो उन बिंदु या पैरा में लिखा है। इस महत्वपूर्ण अंक की ओर जो आप अपने उत्तर में देना चाहते हैं।भारतीय प्रशासनिक सेवा के जीएस पेपर -1, 2 और 3 के उत्तर में निष्कर्ष देना आवश्यक है। 

यह सबसे ज्यादा जरूरी पेपर -2 और पेपर- 3 में है। आप इसकी जगह इन निष्कर्ष शीर्षकों का भी इस्तेमाल कर सकते है जैसे कि ” वे फॉरवर्ड ” या ” फ्यूचर अहेड” ।जहां भी डॉयग्राम की जरुरत हो वह जरूर बनाए विशेष रूप से भारत और दुनिया के नक्शे में या भूगोल और अंतर्राष्ट्रीय संबंध विषयों में आवश्यक है। फ्लो चार्ट और चित्र के सात आप एक संछिप्त स्वरूप में आपने उत्तर को पेश करने के लिए प्रयास कर सकते हैं।

इस प्रकार, यह महत्वपूर्ण है कि आप सवाल स्पष्ट रूप से पढ़े, विषय का विश्लेषण कर सके। अपने अध्ययन के माध्यम से आप जितना जानते हैं उसका उपयोग करें। उम्मीद है कि इस लेख से IAS मुख्य परीक्षा से संबंधित उपयोगी जानकारी आपको प्राप्त हो गई होगी। 

यह आर्टिकल आपको कैसा लगा कमेंट कर के जरुर बताये और ब्लॉग को सब्सक्राइब जरुर करे 

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मुग़लकाल का इतिहास - शाहजहाँ तथा औरंगजेब


 मुग़लकाल का इतिहास 


शाहजहाँ – शाहजहाँ का जन्म लाहौर में 1592 ई. को मारवाड़ के राजा उदयसिंह की पुत्री जगत गुसाई के गर्भ से हुआ. 1628 ई. में आगरा के राजसिंहासन पर उसका राज्यारोहण हुआ. शाहजहाँ का विवाह आसफ खां की पुत्री अर्जुमंद बानू बेगम से हुआ. विवाह के पश्चात शाहजहाँ ने उसे मुमताज महल की उपाधि से अलंकृत किया.

शाहजहाँ ने दक्षिण भारत में सर्वप्रथम अहमदनगर पर आक्रमण किया तथा 1633 ई. में उसने अहमदनगर को मुग़ल साम्राज्य में विलीन कर दिया. शाहजहाँ के कूटनीतिक प्रयासों से 1639 ई. में कंधार पुनः मुगलों के अधिकार में आ गया था. शाहजहाँ ने 1646 ई. के मध्य एशिया की प्राप्ति का प्रयत्न किया परन्तु अपयश व विफलता ही उसके हाथ लगी.
शाहजहाँ के चार पुत्र थे – दारा, शुजा, औरंगजेब व मुराद. इन सबमे से शाहजहाँ ने अपने बड़े पुत्र दारा को उत्तराधिकारी बनाने का फैसला किया, लेकिन शाहजहाँ के शासन के अंतिम दिनों में उसके चारो पुत्रों मर संघर्ष शुरू हो गया जिसमे औरंगजेब ने अपने पिता को कैद कर लिया तथा अपने भाईयों को परास्त कर सत्ता का अपना अधिकार कर लिया. 1666 ई. में शाहजहाँ की आगरा के किले में मृत्यु हुयी. उसके द्वारा बनाई गई इमारतों में आगरा का ताज महल तथा दिल्ली का लालकिला प्रमुख है. उसका शासनकाल मुगलकाल का स्वर्णका

औरंगजेब (1658 ई. 1707 ई.) – मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेव का जन्म 1618 ई. में उज्जैन के निकट दोहद
नामक स्थान पर हुआ था. उत्तराधिकारी युध्द में विजय प्राप्त करने के पश्चात् 21 जुलाई 1658 ई. को औरंगजेब आगरा के सिंहासन पर बैठा. सम्राट बनने के उपरान्त औरंगजेब ने जनता के आर्थिक कष्टों के निवारण हेतु राहदारी (आंतरिक पारगमन शुल्क) और पानदारी (व्यापारिक चुन्गियां) आदि प्रमुख ‘आबवाबों’ (स्थानीय कर) को समाप्त कर दिया था.

1666 ई. में औरंगजेब क निर्देश पर शाईस्ता खां ने पुर्तगालियों को नियंत्रित करते हुए सोनद्वीप (बंगाल की खाड़ी में स्थित एक द्वीप) पर अधिकार कर लिया 1689 ई. को शम्भाजी (द्वितीय मराठा छत्रपति) का कत्ल करके औरंगजेब ने शिवाजी द्वारा स्थापित मराठा राज्य को मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया. इस प्रकार 1689 ई. तक मुग़ल साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था, लेकिन निरंतर भागदौड़ व युध्द के कारण वह 1705 ई. में बीमार पद गया अंततः 1707 में उसकी मृत्यु हो गयी. उसके शासनकाल में दरबार में नृत्य व संगीत बंद कर दिया गया था. उसने हिन्दुओ पर तीर्थ कर लगाया तथा सती-प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाया उसके शासनकाल में 1668 ई. से हिन्दू त्यौहारों को मनाये जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया इसके अतिरिक्त उसने हिन्दुओं पर पुनः जजिया कर लगाया तथा सिक्खों के नवें गुरु की हत्या करवाई.

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मुगलकाल का इतिहास - अकबर, जहांगीर तथा नूरजहाँ


मुगलकाल का इतिहास 


अकबर – भारतीय इतिहास में अकबर महान शासकों में स्थान रखता है उसका जन्म 1542 को अमरकोट के राजा वीरसाल के महल में हुआ. हुमायूं की मृत्यु के पश्चात् 1556 में उसे दिल्ली की गद्दी पर बैठाकर उसका राज्याभिषेक किया गया. बैरमखां उसका संरक्षक था. 1556 में पानीपत की द्वितीय लड़ाई में उसने हेमू को परास्त किया.
1556 से 1560 की अवधि बैरमखां के प्रभुत्व का समय था, जबकि 1560 से 1564 तक पर्दा सरकार थी. 1564 के बाद ही अकबर सत्ता का सम्पूर्ण उपयोग करने की स्थिति में आ पाया उसने 1563 में हिन्दुओं पर से तीर्थ यात्रा कर हटाया.

1564 में उसने हिन्दुओं पर से जजिया कर हटाकर एतिहासिक कार्य किया. अकबर ने सहिष्णु धार्मिक नीति को चलाया. 1575 में इबादतखाना की स्थापना की, जहाँ धार्मिक वाद-विवाद आयोजित किया जाता था. 1576 में उसके नवरत्न में से एक मानसिंह ने हल्दी घाटी के मैदान में मेवाड़ के महाराणा प्रताप को परास्त किया. 1582 में अकबर ने ‘दींन-ए-इलाही’ धर्म चलाया. 1601 में अकबर की अंतिम विजय असीरगढ़ पर थी. 1605 में उसकी मृत्यु हो गयी. अकबर के दरबार में कुल 9 रत्न थे जो की उसके दरबार को सुशोभित करते थे – बीरबल, अबुल फजल, टोडरमल, फैजी, भगवानदास, राजा मानसिंह, अब्दुर्रहीम खानखाना, हकीम हकाम व मुल्ला दो प्याजा ये सभी अकबर के 9 रत्न थे.

जहांगीर – जहांगीर का जन्म 1569 में फतेहपुर सीकरी में हुआ था. इसकी माँ जयपुर की राजकुमारी मरीयम थी. अकबर की म्रत्यु के पूर्व ही 1599 में जहांगीर (पारिवारिक नाम सलीम) ने उसके खिलाफ विद्रोह कर दिया इसके विद्रोह काल में अकबर ने सलीम के पुत्र खुसरो को उतराधिकारी बनाने का निश्चय किया, परन्तु 1604 में सलीम को क्षमा कर दिया गया. अक्टूबर 1605 में अकबर की मृत्यु के पश्चात सलीम गद्दी पर बैठा और नूरदीन मुहम्मद जन्हागीर ने गाजी की उपाधि धारण की. जहाँगीर द्वारा यमुना के किनारे पर एक स्थान से आगरा क्किला के शाह्बुर्ज तक घंटियाँ लगी हुई एक स्वर्ण जंजीर लगा दी जिससे न्याय प्रार्थी घंटी बजाकर सीधे ही सम्राट से न्याय याचना कर सकता था. जहांगीर के पुत्र खुसरो द्वारा विद्रोह करने व सिक्खों के गुरु अर्जुनदेव द्वारा आशीर्वाद दिए जाने पर कुपित होकर जहांगीर ने गुरु अर्जुनदेव को कैद कर लिया तथा मृत्यु दंड दे दिया.

नूरजहाँ – नूरजहाँ एक अफगान गियासबेग की पुत्री थी जो अकबर के काल में भारत आया था. जहाँगीर ने 1611 में नूरजहाँ से विवाह किया. नूरजहाँ अनिद्ध सौन्दर्य से युक्त एक मेधावी महिला थी. वह फारसी में पद्य रचना भी करती थी. नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम गुलाब से इत्र निकालने की विधि की आविष्क्त्री मानी जाती हा. नूरजहाँ ने राजदरबार में एक गुट स्थापित कर लिया था इस गुट में जहाँगीर का पुत्र ख़ुर्रम (शाहजहाँ) भी था.
सन 1627 को जहाँगीर की मृत्यु हो गयी उसे लाहौर के निकट दफनाया गया. जहाँगीर के शासनकाल में चित्रकला अपने चरम सीमा पर थी. अंग्रेज यात्री हाकिंस व थामस रो जहाँगीर के दरबार में आये थे.

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मुग़ल वंश - मुगलकाल की शुरुआत - बाबर, हुमायूँ तथा शेरशाह


मुग़ल वंश (1526-1707 ई.)



भारत के इतिहास में मुगलवंश का महत्वपूर्ण स्थान है इसकी स्थापना बाबर के द्वारा की गयी.

बाबर – बाबर का जन्म 1483 में हुआ इसके पिता उम्रशेख मिर्जा फरगना (तुर्किस्तान का एक भाग) के शासक थे उनकी मृत्यु के पश्चात् 1494 में वह फरगना की गद्दी पर बैठा. 1504 में उसने काबुल में अपने को स्थापित किया. 1519 में उसने भारत की तरफ रुख करना शुरू किया. 1526 में पानीपत के प्रथम युध्द में उसने इब्राहिम लोदी को हराया व भारत में मुगलवंश की स्थापना की इस युध्द में पहली बार तोपों का प्रयोग हुआ. बाबर का अगला महत्वपूर्ण युध्द 16 मार्च 1527 को खानवा के मैदान में लड़ा गया जहां राजपूतो की सेना महाराजा संग्राम सिंह के नेतृत्व में पराजित हो गयी 1528 में चंदेरी पर विजय प्राप्त कर मेदिनी राय को हराया. बाबर व अफगानों के बीच 1529 ने घघ्घर का युध्द हुआ, जिसमे बाबर की विजय हुई 1530 में बाबर की मृत्यु हो गयी. उसकी कब्र काबुल में है. उसने अपनी आत्मकथा लिखी है ‘तुजुक-ए-बाबरी’ जो की तुर्की में लिखी गयी है.

हुमायूँ – नसीरूद्दीन मुहम्मद हुमायूं का जन्म 6 मार्च 1508 को काबुल में हुआ था. बाबर की मृत्यु के बाद वह गद्दी पर बैठा.1530 में हुमायूं ने कालिन्जर के किले पर घेरा डाला, परन्तु विजय प्राप्त करने के पूर्व ही घेरा उठा लिया. 1532 में दौरा के युध्द में अफगानों को पराजित किया. जून 1532 में चौसा के नजदीक हुई लड़ाई में शेरशाह ने हुमायूं को बुरी तरह पराजित किया. फिर 1540 में कनौज्ज (बिलग्राम) के युध्द के बाद हुमायूं पराजित हुआ.

इसके पश्चात् हुमायूं को देश छोड़ना पड़ा. बाद में ईरान के शाह की मदद से पुनः हुमायूं अपने खोये राज्य को प्राप्त करने में सफल हो सका. 1555 में उसने दिल्ली पर कब्ज़ा किया सन 1556 को दिल्ली में अपने दीन-ए-पनाह पुस्तकालय की सीढियों से गिर जाने के कारण हुमायूं की मृत्यु हो गयी.

शेरशाह – शेरशाह का जन्म 1472 में हुआ इसके पिता हसन खां सासाराम के जागीरदार थे इसने कुछ समय तक अपने पिता की जागीर की देखरेख में मदद की कुछ दिनों के लिए यह बाबर की सेवा में भी रहा बिहार के नुहानी शासक बहार खां लोहानी की मृत्यु हो गयी तो धीरे-धीरे यहाँ के शासन पर शेरशाह का नियंत्रण हो गया 1534 में शेरशाह ने सूरजगढ़ के युध्द में बंगाल के शासक को पराजित किया. 1938 में रोहतासगढ़ के किले पर अधिकार किया.

1539 में प्रसिध्द चौसा के युद्ध में हुमायूं को पराजित किया. 1540 में अंतिम रूप से कनौज्ज के युध्द में हुमायु को पराजित किया और दिल्ली पर अपना अधिकार कर लिया. 1545 में कालिंजर अभियान के दौरान बारूद में आग लग जाने की वजह से शेरशाह की मृत्यु हो गयी. शेरशाह ने लाहौर से बंगाल तक एक सडक का निर्माण करवाया, जिससे आज जी.टी. रोड कहा जाता जाता है. दिल्ली का पुराना किला, रोहतासगढ़ का किला एवं सासाराम में उसका मकबरा स्थापत्य के बेहतरीन नमूने है. पद्मावत के लेखक मलिक मुहम्मद जायसी इसी समय में थे शेरशाह के बाद उसका पुत्र इस्लामशाह गद्दी पर बैठा, लेकिन कुछ समय बाद 1555 में हुमायु में पुनः दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया.



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विजयनगर साम्राज्य - महान सम्राट कृष्णदेवराय


विजयनगर साम्राज्य

विजयनगर की स्थापना हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाईयों द्वारा 1336 ई. में की गई. स्थापना के बाद से ही विजयनगर व उसके पडौसी राज्य बहमनी का संघर्ष निरंतर चलता रहा.

प्रथम संघर्ष 14वीं शताब्दी के उतरार्ध में बहमनी शासक मोहम्मद प्रथम और विजयनगर के शासको बुक्का प्रथम और हरिहर द्वितीय के बीच हुआ. बुक्का प्रथम पराजित हुआ किन्तु हरिहर द्वितीय ने बहमनी सेनाओ को पराजित किया और विजयनगर की उत्तरी सीमा को कृष्णा नदी तक विस्तृत कर दिया.

14वीं शताब्दी के अंतिम चरण में फिरोजशाह बहमनी ने विजयनगर पर आक्रमण किया और देवराय प्रथम को पराजित कर संधि पर बाध्य किया. कुछ समय पश्चात् देवराय द्वितीय ने बहमनी पर चढ़ाई कर कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया. अहनद प्रथम ने 1425 ई. के बाद विजयनगर की स्थिति को प्रभावित किया और तेलंगना एवं रायचूर दोआब के क्षेत्रों में बहमनी सत्ता को सुद्रढ़ किया.

15वीं शतब्दी के अंतिम चतुर्थांश में महमूद गवां ने बहमनी राज्य की स्थिति को पुनः सर्वोपरि कर दिया. उसकी म्रत्यु के पश्चात् बहमनी का विघटन आरम्भ हो गया. इसका लाभ उठाकर विजयनगर के शासक कृष्णदेवराय (1509-29 ई.) ने विजयनगर का प्रभुत्व स्थापित किया. प्रशिध विदूषक तेनालीराम उन्ही के दरबार में था. 1565 ई. में बहमनी राज्य के प्रमुख घटकों ने एक साथ होकर विजयनगर पर चढ़ाई कर दी और तालीकोटा की लडाई (1565) उसे पराजित कर दिया तथा विजयनगर के साम्राज्य का अंत कर दिया.

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लोदी वंश की स्थापना तथा पतन


सैय्यद वंश

ख़िज्र खां ने सैय्यद वंश की स्थापना की इसने 1414 ई से 1421 तक शासन किया ख़िज्र खां ने न तो कभी शाह की उपाधि धारण की और न ही अपने नाम के सिक्के चलाये
 मुबारकशाह – 1421 -1434 ई –में यह ख़िज्र खां का उत्तराधिकारी था उसने सर्वप्रथम शाह की उपाधि धारण की व अपने नाम के सिक्के चलाये इसके बाद दो शासक मुहम्मदशाह शाह 1434 – 1444 ई और अलाउदीन आलमशाह 1444 -1451 अयोग्य थे अलाउदीन आलमशाह द्वारा अपनी स्वेच्छा से दिल्ली का पद छोड़ देने के बाद 1451 ई में बहलोल लोदी ने उस पर अपना अधिकार कर लिया तथा लोदिवंश की स्थापना की.

लोदी वंश - बहलोल खां 1451 -1489 –बहलोल खां अफगानों की लोदी जाति का था  उसने दिल्ली में प्रथम अफगान साम्राज्य की नीव डाली लगभग 38 वर्ष शासन करने पश्चात् 1489 में उसकी मृत्यु हो गई  
                                                
सिकन्दर लोदी - 1489 -1517 –बहलोल लोदी की मृत्यु के बाद उसका दूसरा पुत्र निजाम खां 17 जुलाई 1489 को सुल्तान सिकन्दर शाह की उपाधि धारण कर सुल्तान घोषित किया गया इसने न्याय प्रबंध करने में विशेष रूचि दिखाई उसने भूमि की माप करायी और उसने आधार पर भूमि क्रर नियत करने का आदेश दिया इसके उसने प्रमाणिक गज चलाया जो प्राय 30 इंच का होता था यह सिकंदरी गज कहलाया उसने 1506 में आगरा नगर का निर्माण करवाया 21 नवम्बर 1517 को उसकी मृत्यु हो गई.

इब्राहीम लोदी (1517-1526 ई.) – सिकंदर की म्रत्यु के पश्चात् उसका ज्येष्ठ पुत्र इब्राहीम लोदी 21 नवम्बर 1517 ई. को आगरा में गद्दी पर बैठा. 20 अप्रैल 1526 ई. को पानीपत के मैदान में उसका बाबर से युध्द हुआ जिसमे इब्राहीम लोदी की हार हुई और लोदी वंश समाप्त हो गया. इस तरह तरह कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का संस्थापक था तथा इब्राहीम लोदी दिल्ली सल्तनत का अंतिम शासक था.

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Neno Technology - नेनो टेक्नोलॉजी की उपयोगिता

अमेरिका के बाजार में पैठ बना लेने के बाद अब नेनो टेक्नोलॉजी के उत्पादों ने अब भारतीय बाजारों पर भी अपना कब्ज़ा करना शुरू कर दिया है । हालांकि भारतीय बाजारों में नैनो टेक्नोलॉजी के उत्पादों की संख्या काफी कम है लेकिन भारतीय  विशेषज्ञ भी अब इस कार्य क्षेत्र में शोध करने के लिए जुट गए है । फ़िलहाल अगर देख जाये तो नेनो टेक्नोलॉजी चिकित्षा से लेकर उद्योग आदि सभी क्षेत्रो में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है ।

चिकित्सा के क्षेत्र में :- 

नेनो टेक्नोलॉजी का वर्तमान समय में सर्वाधिक प्रभाव चिकित्सा क्षेत्र में ही देखने को मिल रहा है । वैज्ञानिक इस तकनीक का उपयोग कर गोल्ड पार्टिकल बैक्टीरिया ट्यूमर सेल्स का निर्माण कर रहे है, जो कैंसर की समूची प्रक्रिया को बदल देगी । इससे ट्यूमर के खतरनाक तत्त्व को ही नष्ट कर दिया जाता है । इसके आलावा विशेषज्ञ ऐसी कलाई घडी के रूप में इस तकनीक के विकास में लगे है, जिसके माध्यम से आप सहज ही अपने शरीर की तमाम बिमारियों का पता सरलता से लगा पाएंगे ।  रोग उत्त्पन्न होते ही उसका पता लग जाने और इलाज हो जाने से व्यक्ति की औसत आयु में वृद्धि होना स्वाभाविक है ।

कंप्यूटर के क्षेत्र में :

- इस पद्धति का प्रभाव कंप्यूटर के क्षेत्र में भी काफो क्रन्तिकारी परिवर्तन लाया है । सुपर कंप्यूटर का नाम तो शायद अपने सुना ही होगा । यह नेनो टेक्नोलॉजी का ही एक अद्भुत परिणाम है । बस इसके लिए आपको कंप्यूटर में कनेक्टर के रूप में नैनोवायर का उपयोग करना होता है । इस वायर के लगते ही कंप्यूटर की मेमोरी १० लाख गुना ज्यादा बाद जाती है । साथ ही इस तकनीक का इस्तेमाल अब कंप्यूटर की चिप के सर्किट निर्माण में भी किया जा रहा है । जिससे की अन्य चिप के मुकाबले इससे अच्छेपरिणाम प्राप्त हो । इस तकनीक के उदय से कंप्यूटर जगत को एक नई गति मिली ।

उद्योग में :- 

इस क्षेत्र में यह तकनीक बहुत ही लाभप्रद है जैसे टिटेनियम डाई ऑक्साइड पेंट । यदि इसे नेनो मटेरियल बनाकर पेंट में मिला दिया जाये तो उसकी चमक और हार्डनेस और भी अधिक बढ़ जाएगी । इस तरह से तैयार पेंट अंता सामान्य पेंट के मुकाबले ज्यादा दिन चलता है । इसके आलावा कपडा उद्योग में भी इस पद्धति का इस्तेमाल कर नैनोबेस्ड क्लोथ्स बनाये जा रहे है । इस तकनीक के उपयोग से तैयार कपडे पसीना आसानी से सोख लेते है । इतना ही नहीं, यह कपडा बाजार में उपलब्ध अन्य कपड़ों के मुकाबले कहि अधिक टिकाऊ है
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