भारत में यूरोपीय आगमन
अंग्रेजों का भारत आगमन - ब्रिटेन के व्यापारियों को भी भारत के साथ व्यापार करने की तीव्र इच्छा थी. इस हेतु 31 दिसंबर 1600 ईसवी को इंग्लैंड के 100 व्यापारियों ने लंदन में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की. इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ ने 15 वर्षों के लिए इस कंपनी को पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने का एक अधिकार प्रदान कर दिया. 1608 ईस्वी में हॉकिंस जहांगीर के दरबार में आया जहांगीर ने उसे सूरत में व्यापारिक फैक्ट्री खोलने की अनुमति दे दी. 1615 ईसवी में टॉमस रो मुगल दरबार में आया इसके प्रयासों से सूरत, आगरा, अहमदाबाद और भाडोंच में कोठियां (फैक्ट्री) स्थापित करने में सफल हुए. 1617 ईस्वी में मसलीपट्टनम मैं फैक्ट्री कायम की गयी. 1640 में फ्रांसिस ने चंद्रगिरी के राजा से पूर्वी समुद्र तट पर भूमि प्राप्त कर मद्रास की स्थापना की. इस कोठी का नाम फोर्ट सेंट जॉर्ज रखा गया यह मुख्यालय के रूप में सबसे मशहूर व्यापारिक केंद्र बन गया.1650 ई. में अंग्रेजों को बंगाल में भी व्यापार करने की अनुमति मिल गई. बंगाल में अंग्रेजी व्यापार ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने देश की सरकार से भी समय-समय पर वांछित सहयोग मिलता रहा. कोलकाता, चेन्नई तथा मुंबई कंपनी के तीन प्रमुख व्यापारिक केंद्र हो गए.
भारत में फ्रांसीसियों का आगमन - भारत में फ्रांसीसी व्यापारी सबसे बाद में आए. सन 1664 में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई. 1669 फ्रांसीसियों ने सूरत में अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित की. उन्होंने भारत के पूर्वी समुद्र तट पर तंजोर के शासक से मद्रास (चेन्नई) के निकट एक साधारण सा गांव प्राप्त किया. यही पर उन्होंने पांडिचेरी की नींव डाली भारत में फ्रांसीसी बस्तियों का संस्थापक फ्रान्कोई मार्टिन था. 1693 ईसवी में डचों ने पांडिचेरी पर अधिकार कर लिया पर 1697 ईस्वी में यह पुनः फ्रांसीसियों के अधिकार में आ गया.