सहज सरम रघुवर बचन, कुमित करि जान
उपरोक्त उदाहरण की पंक्तियों में "दोहा" छंद का प्रयोग हुआ है | छंद कविता की गीतात्मकता में वृधि करते है | कविता के रचना - विधान को "छंद" कहते है | किसी निश्चित क्रम में गति और यति का निर्वाह करते हुए संगीतमय या भावपूर्ण जो रचना की जाती है, उसके रचना - विधान का नाम छंद है |
छंद दो प्रकार के होते है -
(1) मात्रिक छंद - इनमे मात्राओं की गिनती निश्चित रहती है |
(2) वर्णिक छंद - इनमे वर्णों की संख्या एवं रूप निश्चित रहता है, मात्राएँ नहीं |
मात्रिक छंद
छप्पय -
यह एक विषम मात्रिक छंद है | इस छंद में छः चरण होते है | इसके प्रथम चार चरण रोला और दो उल्लाला के होते है | रोला के प्रत्येक चरण में 11 -13 की यति पर 24 मात्राएँ और उल्लाला के हर चरण में 15 - 13 की यति पर 28 मात्राएँ होती है |
उदाहरण -
जहाँ स्वतंत्र विचार न बदलें मन में मुख में,
जहाँ न बाधक बनें सबल निबलों के सुख में |
सबको जहाँ समान निजोंन्ति का अवसर हो,
शान्तिदायिनी निशा, हर्ष सूचक वासर हो ||
सब भांति सुशासित हो जहाँ, समता के सुखकर नियम,
बस उसी स्वशासित देश में जागें हे जगदीश हम ||
रोला + उल्लाला = छप्पय
वर्णिक छंद
कवित्त -
इस वर्णिक छंद क्र प्रत्येक चरण में 16 और 15 के विराम से 31 वर्ण होते है | प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है |
उदाहरण -
सच्चे हो पुजारी तुम प्यारे प्रेम मंदिर के,
उचित नही है तुम्हे दुःख से कराहना ,
करना पड़े जो आत्म त्याग अनुराग वश,
तो तुम सहर्ष निज भाग्य की सराहना |
प्रीति का लगाना कुछ कठिन नहीं है, सखे,
किन्तु हैं कठिन नित्य नेह का निबाहना,
चाहना जिसे हैं तुम्हें चाहिए सदैव उसे,
तन मन प्राण से प्रमोद युत चाहना ||
सवैया -
22 से लेकर 26 वर्ण तक के छंद को सवैया कहते है | ये अनेक प्रकार के होते हैं -
मत्तगयंद, दुर्मिल, मदिर, चकोर, किरीट आदि |
मत्तगयंद सवैया -
इस वर्णिक छंद में चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण में सात भगण और दो गुरु के क्रम में 23 वर्ण होते है | इसे मालती सवैया भी कहते है |
उधाहरण -
धूरी भरे अति शोभित श्यामजू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी |
खेलत खात फिरै अंगना, पग पैंजनी बाजति पीरी कछौटी ||
वा छवि को रसखानि बिलोकत, वरात काम कलानिधि कोटि |
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सौ ले गयौ माखन रोटी ||
दुर्मिल सवैया -
इस वर्णिक छंद के प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते है | इस छंद को "चन्द्रकला" भी कहते है |
उदाहरण -
पुर तैं निकसी रघुबीर वधू धरि - धीर दये मग में डग द्वै |
झलकी भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गये मधुराधर वै ||
फिर बुझति हैं चलनौं अब केतिक पर्णकुटी करिहों कित है |
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारू चलीं जल च्वै ||
accha h or accha
ReplyDeleteThanks boss
ReplyDeleteNot nice
ReplyDeleteशानदार जानकारी....बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteऔर सरल उदाहरण चाहिये
ReplyDeleteShukriya
ReplyDeleteThank you so much.
ReplyDeleteNice
ReplyDeletenice
ReplyDeleteथोडे ओर सरल उदाहरण
ReplyDeleteछंद के बहुत सही उदाहरण सहित जानकारी
ReplyDeleteकक्षा 12th की हिंदी की किताब से टीपकर लिखा 😂😂😂
ReplyDeleteHa ha ha ha😆😆
Delete🤣🤣🤣🤣🤣
Delete🤣🤣🤣😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😜😜😂😂😂😂😂😂😂😂😂🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣😜
Delete😂😂😂
DeleteVery use ful
ReplyDeleteVery nice bto
ReplyDeletekumar@gimel.com
ReplyDeleteThanks very useful information
ReplyDeleteRrjlgtfddz
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