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जैन धर्म का इतिहास, महासभाएं, तीर्थकर एवं जैन धर्म का योगदान व धार्मिक महत्व



जैन परम्परा के अनुसार जैन धर्म के संस्थापक प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव थे जैन धर्म में कुल 24 तीर्थकर हुए है 23वे तीर्थकर पार्श्वनाथ थे, ये काशी के राजा अश्वसेन के पुत्र थे |

जैन महासभाएं

स्थान                  समय                   अध्यक्ष
पाटलीपुत्र           तीसरी सदी ई.पू.            स्थुलभद्र
कलिंग             दूसरी सदी ई.पू.            संभूति विजय
आंध्रप्रदेश           प्रथम ईस्वी               आचार्य अर्ह्द्वली
वल्लभी            चौथी शताब्दी ई.पू.         नागार्जुन सूरि
वल्लभी            पांचवी शतब्दी ईस्वी        देवर्धि क्षमाश्रमण
 

महावीर स्वामी 


महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थकर थे, इनका जन्म 599 ई.पू. में उत्तरी बिहार के प्रसिद्ध वज्जिसंघ की राजधानी वैशाली के एक प्रमुख राज्य कुंडग्राम के ज्ञातृक क्षत्रियों के प्रधान सिद्धार्थ के घर हुआ था | इनकी माता का नाम त्रिशाला था जो लिच्छवि नरेश चेतक की बहन थीं | 30 वर्ष की अवस्था में महावीर सन्यासी हो गये 12 वर्ष तक इन्होने घोर तपस्या की अवस्था में जम्भियग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के तट पर इन्हें कैवल्य प्राप्त हुआ 30 वर्षों तक ये घूम-घूम कर अपने धर्म का प्रचार करते रहे | 72 वर्ष की उम्र में महावीर स्वामी का निवार्ण राजगीर के समीप पावापुरी में 527 ई.पू. में हुआ |

जैन धर्म के सिद्धांत – जैन धर्म निरीश्वरवादी सिद्धांत का प्रतिपादक है इस धर्म में संसार दुःख मूलक मन गया है संसार को सत्य और अनादि माना गया है कर्म फल ही जन्म और मृत्यु का कारण है कर्मफल से छुटकारा पाकर ही व्यक्ति निर्वाण प्राप्त कर सकता है |

जैन धर्म के त्रिरत्न है – सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान व सम्यक आचरण 
त्रिरत्न के अनुशीलन में आचरण पर अत्यधिक बल दिया गया है
जैन धर्म में पांच महाव्रतों का विधान है  -
  (1)    अहिंसा 
 (2) सत्य वचन 
 (3) अस्तेय अर्थात चोरी न करना  
 (4) अपरिग्रह अर्थात सम्पति अर्जित न करना
 (5) ब्रम्हचर्य अर्थात इन्द्रिय निग्रह 
  इसमें पांचवे व्रत ब्रम्हचर्य को महावीर स्वामी ने जोड़ा 
जैन धर्म में अहिंसा या किसी भी प्राणी को न सताने के व्रत को सर्वाधिक महत्व दिया गया है महावीर के पूर्व तीर्थकर पार्श्व ने अपने अनुयायियों को वस्त्र धारण करने की इजाजत दी थी, परन्तु महावीर स्वामी ने वस्त्र का सर्वथा त्याग करने का आदेश दिया था | इसके चलते बाद में जैन धर्म दो भागों में विभक्त हो गया – श्वेताम्बर अर्थात सफ़ेद वस्त्र धारण करने वाले और दिगम्बर अर्थात नग्न रहने वाले |

जैन दर्शन – जैन दर्शन में संसार को वास्तविक तथा अनादि माना गया है यह संसार 6 द्रव्यों – जीव, पुद्गल (भौतिक तत्व), धर्म, अधर्म, आकाश और काल से निर्मित है |

जैन धर्म के 24 तीर्थकर
(1)    ऋषभ या आदिनाथ
(2)    अजितनाथ
(3)    संभव
(4)    अभिनंदन
(5)    सुमित
(6)    पद्मप्रभ
(7)    सुपार्श्व
(8)    चन्द्रप्रभ
(9)    सुविधिनाथ
(10)शीतल
(11) श्रेयासं
(12) वासुपूज्य  
(13) विमल
(14) अनंत
(15) धर्म
(16) शांति
(17) कुन्थु
(18) अरनाथ
(19) मल्लिनाथ
(20) मुनि सुब्रत
(21) नेमिनाथ
(22) अरिष्टनेमि
(23) पार्श्वनाथ
(24) महावीर    
 लगभग 300 ई.पू. में जैन धर्म शेवताम्बर और दिगम्बर नामक दो सम्प्रदायों में बंट गया प्रसिद्ध जैन आचार्य भद्रबाहु दिगम्बर संप्रदाय के समर्थक थे |


जैन धर्म का योगदान – जैन धर्म ने ही सबसे पहले वर्ण व्यवस्था और वैदिक कर्मकांड को रोकने के लिए गंभीर प्रयास आरम्भ किया इन्होने आम लोगो की बोलचाल की भाषा प्राकृत को अपनाया | उनके धर्म ग्रन्थ अर्धगामी में लिखे गये और ये ग्रन्थ ईसा की छटी सदी में गुजरात में वल्लभी नामक स्थान में जो, एक विद्या का केंद था, अंतिम रूप से संकलित किये गये जैनों ने अपभ्रंश भाषा में पहली बार कई महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे |

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