स्वर्णिम युग गुप्त काल
मौर्य साम्राज्य के पतनोपरान्त उत्पन्न हुए दीर्घकालीन राजनीतिक विघटन के पश्चात् गुप्तकाल का उदय हुआ इसका उदय तीसरी सदी के अंत में प्रयाग के निकट कौशाम्बी में हुआ, गुप्त कुषाणों के सामंत थे | गुप्त वंश का प्रथम शासक व संस्थापक श्रीगुप्त (240 – 280 ई.) माना जाता है, जो संभवतः कुषाणों का सामंत था इसने केवल महाराज की उपाधि धारण की चीनी स्त्रोतों में इसे चेलिकोता कहकर पुकारा गया है | श्रीगुप्त के पश्चात् घटोत्कच गद्दी पर बैठा, जिसने महाराज की उपाधि धारण की उसके सन्दर्भ में ज्यादा ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नही है |
चन्द्रगुप्त प्रथम (319-334 ई.)
गुप्त वंशावली में सबसे पहले शासक चन्द्रगुप्त प्रथम था जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी इसने लिच्छवि राजकुमारी कुमारदेवी के साथ विवाह किया था इस वैवाहिक सम्बन्ध से गुप्त साम्राज्य को आर्थिक एवं राजनैतिक लाभ के साथ – साथ अपूर्व प्रतिष्ठा प्राप्त हुई | गुप्त संवत (319-20 ई.) के प्रचलन का श्रेय तो चन्द्रगुप्त को है, इसने पूर्वी भारत में चांदी के सिक्को का प्रचलन भी करवाया था |
समुद्रगुप्त (334-375 ई.)
पिता चन्द्रगुप्त तथा माता लिच्छवि वंशीय कुमार देवी से उत्पन्न योग्य प्रशासक व महान विजेता समुद्रगुप्त भारतीय इतिहास का महानतम शासक था, ए.वी.स्मिथ ने इसे भारत का नेपोलियन कहा है |
प्रसिध्द कवि हरिषेण इसके दरबार में रहता था जिसने प्रयाग प्रशस्ति लेख में समुद्रगुप्त के विजयी अभियानों का उल्लेख किया है उसने अपनी विजयो की उद्घोषणा हेतु अश्वमेध यज्ञ संपन्न करवाया था | समुद्रगुप्त सर्वतोमुखी प्रतिभासंपन्न सम्राट था, महान योध्दा, प्रशासक होने के साथ – साथ वह एक महान संगीतज्ञ भी था जिसे वीणावादन का शौक था इसे कविराज की उपाधि भी मिली थी |
चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (375-412 ई.)
इसके काल में गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष की चोटी पर पहुँच गया इसने प्रसिध्द वाकाटक वंश में अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त की शादी की. सिंहासन उपरांत चंद्रगुप्त ने शकों के खिलाफ एक व्यापक सैनिक अभियान किया जिसमे शक नरेश रुद्रसिंह तृतीय मारा गया | कठियावाड तथा मालवा के क्षेत्र गुप्त साम्राज्य में मिला लिए गए. इस विजय से गुप्त साम्राज्य को पश्चिमी समुद्रतट मिल गया जो व्यापार वाणिज्य के लिए मशहूर था | चन्द्रगुप्त द्वितीय का एक अन्य नाम देवराज या देवगुप्त भी था, उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की | इसने उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया इसके शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान (399-414 ई.) में भारत आया था | एक महान शासक होने के साथ ही चन्द्रगुप्त विद्वानों का आश्रयदाता था अनुश्रुति के अनुसार इसके दरबार में नवरत्नों की एक मण्डली निवास करती थी | इस नवरत्न मण्डली के विद्वान थे – कालिदास, धन्वन्तरी, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटकर्पर, वराहमिहिर, वरुचि आदि |
कुमार गुप्त (415–455 ई.)
इसके शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि इसने अपने पैतृक साम्राज्य को अक्षुण्ण बनाये रखा | स्कंदगुप्त के भितरी अभिलेख से पता चलता है कि कुमार गुप्त के शासनकाल के अंतिम दिनों में पुष्यमित्रों ने आक्रमण कर दिया था जिन्हें उसके पुत्र स्कंदगुप्त ने विफल कर दिया |
स्कंदगुप्त (456-467 ई.)
स्कंदगुप्त को अपने शासनकाल में हूणों के भयंकर आक्रमण का सामना करना पड़ा. इसमें स्कंदगुप्त को सफलता मिली | यह एक योग्य सैन्य संचालक होने के साथ ही साथ एक योग्य प्रशासक भी था इसने चन्द्रगुप्त मौर्य के समय निर्मित गिरनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील पर स्थित बांध का पुनरुध्दार करवाया. स्कंदगुप्त की उपाधि शुक्रादित्य थी इन्होने सुदूर चीन के साथ मित्रतापूर्ण सम्पर्क बनाये रखा |
स्कंदगुप्त के बाद गुप्तवंश का तेजी से पतन हुआ बाद के शासको को विदेशी आक्रमण का सामना करना पड़ा यद्द्पि गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया, परन्तु इसे भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल या स्वर्णिम युग माना जाता है | इस काल में स्थापत्य कला, चित्रकला, धातुकला और साहित्य लेखन की कला की अभूतपूर्व प्रगति हुई, इस काल के साहित्यकारों में महाकवि कालिदास, भारवि, भट्टी, भास, शूद्रक प्रमुख थे. साँची और बोध गया में बौध्द मंदिर तथा सारनाथ का धमेख स्तूप गुप्तकालीन स्थापत्य के उदाहरण है | इस काल की चित्रकला के उदाहरण हमे अजंता (औरंगाबाद) और बाघ के निकट मिलते है |
"गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है"
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Nice
ReplyDeleteVery nice thanks for knoledge
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