भारत में बैंको का राष्ट्रीयकरण
भारतीय रिजर्व बैंक, रिजर्व बैंक ऑफ़ इण्डिया अधिनियम 1948 के शर्तों (सार्वजानिक स्वामित्व का स्थानान्तरण) के तहत 1 जनवरी 1949 को राष्ट्रीयकृत होने वाला पहला बैंक बना. बैंकिंग विनियमन अधिनियम, आर.बी.आई. को भारत में बैंको को विनियमन करने का अधिकार, नियंत्रण और निरिक्षण का अधिकार प्रदान करने के लिए 1949 में पास किया गया. इसलिए आर.बी.आई. देश का शीर्ष या केंदीय बैंक है 1955 में भारतीय स्टेट बैंक को राष्ट्रीयकृत किया गया और 1960 में एस.बी.आई. के सहायक बैंको को भी राष्ट्रीयकृत कर दिया गया.
बैंक का नाम - प्रभावी सहायक बैंक
स्टेट बैंक ऑफ़ हैदराबाद - 1 अक्टूबर 1959
स्टेट बैंक ऑफ़ बीकानेर - 1 जनवरी 1960
स्टेट बैंक ऑफ़ जयपुर - 1 जनवरी 1960
स्टेट बैंक ऑफ़ सौराष्ट्र - 1 मई 1960
स्टेट बैंक ऑफ़ पटियाला - 1 अप्रैल 1960
स्टेट बैंक ऑफ़ मैसूर - 1 marमार्च 1960
स्टेट बैंक ऑफ़ इंदौर - 1 जनवरी 1968
स्टेट बैंक ऑफ़ त्रावनकोर - 1 जनवरी 1960
1 जनवरी 1963 को स्टेट बैंक ऑफ़ बीकानेर और स्टेट बैंक ऑफ़ जयपुर को मिला दिया गया. 1969 में भारत सरकार ने एक अध्यादेश पास किया और 19 जुलाई 1969 अर्धरात्रि के प्रभाव से 50 करोड़ रुपये की पूंजी पार करते हुए 14 सबसे बड़े व्यावसायिक बैंको को राष्ट्रीयकृत कर दिया गया. अध्यादेश के पास होने के दो सप्ताह के भीतर ही संसद ने बैंकिंग कम्पनी अधिनियम (उपक्रम का अधिग्रहण और अंतरण) पास किया.
1980 में पुनः 6 व्यावसायिक बैंको का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया सरकार ने 15 अप्रैल 1980 को 200 करोड़ रूपये तक जमा देनदारी के साथ 6 और व्यावसायिक बैंको को भी राष्ट्रीयकृत कर दिया.
ये बैंक इस प्रकार हैं –
1. आंध्रा बैंक
2. कोर्पोरेशन बैंक
3. न्यू नैंक ऑफ़ इंडिया
4. ओरियंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स
5. पंजाब एंड सिंध बैंक
6. विजया बैंक
राष्ट्रीयकरण के दुसरे चरण के साथ भारत सरकार के बैंकिंग व्यावसाय का लगभग 9% भाग नियंत्रण करने लगा. बाद में साल 1993 में सरकार ने न्यू बैंक ऑफ़ इण्डिया को पंजाब नेशनल बैंक के साथ मिला दिया.
यह राष्ट्रीयकरण बैंको में हुआ इकलौता विलय था जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीयकृत बैंको की संख्या घट कर 21 से 20 रह गयी इसके बाद 1990 के दशक तक राष्ट्रीयकृत बैंक लगभग 4% की दर पर बढे जो की भारतीय अर्थव्यवस्था की औसत वृध्दि दर के करीब थी.
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