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वैदिक संस्कृति या वैदिक काल का विभाजन - ऋग्वैदिक काल

वैदिक संस्कृति युग 


सिन्धु सभ्यता के पतन के बाद आर्यों की नवीन सभ्यता का विकास हुआ, जिसके विषय में हमे सम्पूर्ण जानकारी वेदों से मिलती है इसलिए इस काल को वैदिक काल के नाम से जाना जाता है | आर्य एक अत्यंत ही श्रेष्ठ एवं सुसंस्कृत जाति थी | आर्यों के मूल निवास के संदर्भ में विभिन्न ने अलग-अलग मत व्यक्त किये है |आर्यों के निवास सम्बंधित मत


आदिस्थल          मत
मध्य एशिया    - मैक्समुलर
यूरोप          - सर्विलियम जोन्स
आर्कटिक प्रदेश  - बाल गंगाधर तिलक
तिब्बत        - स्वामी दयानंद सरस्वती
हंगरी          - प्रो. गाइल्स
सप्त सैधव क्षेत्र  - डा. अविनाश चन्द्र

वैदिक काल को दो कालों ऋग्वैदिक काल व उत्तर वैदिक काल में विभाजित किया जाता है |

(1)    ऋग्वैदिक काल – (1500-1000 बी.सी.) - इस काल में लोगों को लोहे का ज्ञान नही हुआ और वे कृषि बजाएँ मुख्यतः  पशुपालन पर निर्भर थे |




भारत में आर्यों के आगमन की जानकारी का मुख्य स्त्रोत ऋग्वेद है |




आर्यों ने सर्वप्रथम सप्त सैन्धव प्रदेश में बसना आरम्भ किया था, ऋग्वेद में जिन नदियों का उल्लेख मिलता है | ये हैं – सिन्धु, सरस्वती, शुतुद्रि, विपासा, परुष्णी, वितस्ता तथा अस्किनी |




ऋग्वेद में आर्यों के पांच काबिले होने की वजह से उसे “पंजन्य” कहा गया ये है – पुरू, यदु, अनु, तुर्वशु एवं द्र्स्यु | भरत, किवि, त्रित्स शासक आर्य वंश के थे |




भरत कुल के नाम से ही देश का नाम ‘भारत वर्ष’ पड़ा इनके पुरोहित वशिष्ट मुनि थे |




ऋग्वेद अग्नि, मित्र, वरुण, इंद्र आदि देवताओं को समर्पित ग्रन्थ हैं ऋग्वेद का पाठ करने वाले ब्राह्मण को होतृ कहा जाता था |



ऋग्वैदिक काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी के रूप में सिन्धु व सरस्वती का नाम आता है |




असतो माँ सद्गमय वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है |




ऋग्वैदिक काल में गंगा तथा यमुना का उल्लेख बहुत कम हुआ है |




ऋग्वैद के सबसे महत्वपूर्ण देवता इन्द्र थे, जिन्हें आर्यों का युद्ध नेता व वर्षा का देवता माना जाता है |



ऋग्वैदिक काल में राजकीय कार्यों में राजा की सहायता के लिए अनेक पदाधिकारी थे जिनमे सेनापति, पुरोहित, पुरप स्प्ररा व दूत उल्लेखनीय है | पुरप दुर्गपति होते थे, जबकि स्प्ररा गुप्तचर होते थे |




ऋग्वेद में विवाह एक उच्च एवं पवित्र संस्कार समझा जाता था लेकिन जो लड़कियां दीर्घकाल तक अथवा आजीवन अविवाहित रहती थी ऐसी कन्याओं को ‘आमजू’ कहते थे |




ऋग्वैदिक काल में साधरणतया एक पत्नी व्रत की प्रथा ही प्रचलित थी |



ऋग्वैदिक काल में संगीत मनोविनोद का पूर्ण साधन था इसके तीन प्रकार थे – 
(1) नृत्य 
(2) गान
 (3) वाध्य | 

संगीत के अतिरिक्त घुड़दौड़, रथदौड तथा मल्लयुद्ध मनोरंजन के साधन थे, ऋग्वेद में द्यूतक्रीडा का भी वर्णन है |



ऋग्वैदिक सभ्यता ग्राम्य थी,तत्कालीन समाज की सबसे छोटी राजनितिक व सामाजिक इकाई थी |

ऋग्वैदिक आर्यों के जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पशु गाय थी इस समय दक्षिणा में गाय का दान किया जाता था |

ऋग्वेद में गाय मुद्रा के रूप में प्रतिष्ठित थी, ऋग्वेद में इंद्र प्रतिमा का मूल्य 1 गाय कहा गया है |
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