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गुप्तोत्तर काल के प्रमुख राजवंश - पुष्यभूति वंश, आंध्र सातवाहन वंश एवं चोल राजवंश

गुप्तोत्तर काल

 पुष्यभूति वंश, आंध्र सातवाहन वंश एवं चोल राजवंश


पुष्यभूति वंश – गुप्त साम्राज्य के विध्वंश के पश्चात् हरियाणा के अम्बाला जिले के थानेश्वर नामक स्थान पर पुष्यभूति वंश की स्थापना हुई. इसका संस्थापक पुष्यभूमि था, जो की 450 ई. के अनुमानित था. संभवतः प्रभाकर वर्धन इसका चौथा शासक था जिसके दो पुत्रो में बड़ा राज्य वर्ध्दन व् छोटा हर्षवर्धन एवं पुत्री राजश्री थी |

हर्षवर्धन – राज्य वर्धन के बाद लगभग 606 ई.में हर्षवर्धन थानेश्वर के सिंहासन पर बैठा | इसके साम्राज्य क्षेत्र में जालन्धर, पंजाब, कश्मीर, नेपाल एवं वल्लभी तक शामिल था. चीनी यात्री हेन्सांग करीब 630 से 640 ई. के बीच इसके समय भारत आया. हर्ष एक प्रतिष्ठित नाटककार एवं कवि भी था इसने नागानंद, प्रियदर्शिका एवं रत्नावली की रचना की. इसके दरबार मर बाणभट्ट जैसा विद्वान् था. हर्ष की राजधानी कन्नौज थी. वह स्वयं बौध्द (महायान) समर्थक होते हुए भी विष्णु एवं शिव की स्तुति करता था. हर्ष को चालुक्य वंश के शासक पुलकेशिन द्वितीय ने नर्मदा के तट पर हराया था. ऐहोल प्रशस्ति में इसका उल्लेख मिलता है |

आन्ध्र सातवाहन वंश – आंध्र सातवाहन वंश दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंशों में माने जाते है विद्वानों के अनुसार इनका क्षेत्र आधुनिक आंध्रप्रदेश में फैला था. इस वंश का प्रथम राजा सिमुक (60-37 ई.पू.) माना जाता है इसने अपने वंश को मौर्यों की अधीनता से मुक्त किया | शातकर्णी प्रथम (27-17 ई.पू.) प्रारम्भिक राजाओ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण था उसने साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार किया एवं उसे गोदावरी डेल्टा में प्रथम साम्राज्य स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है |

हाल (20-24 ई.पू.) ने सातवाहनो की क्षमता को पुनः स्थापित किया उसने गाथा सप्तशती नामक पुस्तक की भी रचना की. प्रसिध्द साहित्यकार गुणाढ्य उसके दरबार में थे |


गौतमी पुत्र शातकर्णी (106-131 ई.) इस वंश का एक महान शासक था. वह इस वंश का पहला शासक था जिसने अपने नाम के साथ अपनी माँ का नाम जोड़ा इसकी राजनैतिक उपलब्धिया नासिक प्रशस्ति में लिखीं हुई है. इसके शासन के अंतिम समय में शकों के आक्रमण हुए, जिन्होंने बहुत सारे क्षेत्र पर आधिकार भी कर लिया | यज्ञ श्री शातकर्णी इस वंश का अंतिम शासक था | 195 ई.स. में इसकी मृत्यु के पश्चात सातवाहनो का पतन शुरू हो गया |

चोल वंश - चोल वंश का तीसरी व चौथी शताब्दी में पांड्य तथा चेर वंशीय शासको के उत्कर्ष के कारण पतनं हो गया और नवी शताब्दी के पूर्वार्ध्द में पल्लवों की शक्ति क्षीण होने के बाद एक बार पुनः चोल वंश का उदय हुआ | पुनः चोल वंश की स्थापना का श्रेय विजयालय (850-871 ई.) को जाता है. आदित्य प्रथम परान्तक प्रथम, राजराज प्रथम, राजाधिराज प्रथम, राजेन्द्र द्वितीय, वीर राजेन्द्र, कुलोतुंग आदि इस वंश के प्रमुख नरेश हुए |

विजयालय ने तंजौर को अपनी राजधानी बनाया. राजराज प्रथम चोल वंश के शक्तिशाली नरेशो में से एक था. इसने तंजौर में भगवन शिव का विशाल मंदिर निर्मित कराया, जो कालान्तर में राज राजेश्वर के नाम से प्रसिध्द हुआ. उसने पांड्य तथा केरल में राजाओ को परास्त कर दिया | उसने अपनी राजधानी गंगैकोंडचोलपुरम में एक विशाल मंदिर तथा एक राजप्रसाद का निर्माण कराया इस वंस के अंतिम शासक राजेन्द्र तृतीय को पांड्य शासको ने पराजित कर चोल वंश का अंत कर दिया 


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