मध्यकालीन भारत के ऐतिहासिक तथ्य भाग - 1
आठवी शताब्दी से तेहरवी शताब्दी तक के काल को पूर्व मध्यकाल कहते है. इसके अंतर्गत उत्तर भारत के राजपूत राज्यों और दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य का इतिहास आता है. तेहरवी शताब्दी के बाद के काल को उत्तर मध्यकाल कहते है जिसके अंतर्गत दिल्ली सल्तनत, बहमनी और विजयनगर के राज्यों और मुगल साम्राज्य का इतिहास आता है |
ईसवी सन 750 से 1000 तक तीन बड़े राजवंश प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट उत्तर भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के प्रयत्न में परस्पर युध्दरत रहे. यह नगर उत्तर भारत का कन्नौज था |
दक्कन के उत्तर पश्चिमी भाग में नासिक के आसपास के क्षेत्र पर राष्ट्रकूटों का शासन था. मालखेद उनकी राजधानी थी. राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष एक महत्वकांक्षी शासक था, जो राष्ट्रकूटों को उत्तर भारत में भी उतना ही शक्तिशाली बनाना चाहता था, जितने की वे दक्कन में थे अतः वह कन्नौज पर अधिकार करके उत्तर भारत पर शासन करना चाहता था |
प्रतिहार दक्षिण राजस्थान के कुछ भागों और अवन्ती पर शासन करते थे. प्रतिहारों ने आठवी शताब्दी के अंत तक कन्नौज पर अधिकार कर लिया |
पाल बंगाल पर शासन करते थे, वे भी कन्नौज पर अधिकार करना चाहते थे. गोपाल, पाल वंश का प्रथम निर्वाचित शासक था. धर्मपाल पालवंश का शक्तिशाली शासक था |
धर्मपाल ने अपने संरक्षित शासक ओ कन्नौज की गद्दी पर बैठाया, किन्तु पाल शासको का कन्नौज पर अधिक समय तक अधिकार न रहा. प्रतिहार शासक भोज ने कन्नौज पर फिर से अधिकार कर लिया, लेकिन राष्ट्रकूट राजा ध्रुव ने भोज को पराजित किया |
सन 916 ई. में राष्ट्रकूटों ने फिर से कन्नौज पर आक्रमण किया. इस समय तक तीनो राज्य राष्ट्रकूट पाल और प्रतिहार लगातार युध्द करते – करते थक गये थे. इन सौ वर्षों के अन्दर इन तीनो राज्यों का पतन हो गया |
राजपूत – राजपूत राजाओं ने अपने आपको सूर्यवंश व चन्द्रवंश से सम्बन्ध किया. हिंदी के प्रसिध्द कवि चंदरबरदाई ने प्रतिहार, चालुक्य, परमार व चौहान को अग्निकुंड से उत्त्पन बताया है |
अग्निकुल के इन चार राजपूतों ने पश्चिमी भारत, राजपुताना और मध्य भारत के कुछ भागों में अपने राज्य स्थापित किये |
चौहान राज्य के उत्तर-पूर्व में तोमर वंश का राज्य था. ये प्रतिहार के संरक्षण में शासक थे, किन्तु प्रतिहारो के कमजोर होने पर ये स्वतन्त्र हो गये. तोमरो ने 736 ई. में दिल्ली नगर का निर्माण कराया. बाद में चौहानों ने तोमरो को पराजित करके उनके राज्य को अपने राज्य में मिला लिया |
ये राज्य शक्ति प्रदर्शन करते-करते कमजोर हो गये, जब उन पर उत्तर-पश्चिम से आक्रमण हुए तब वे उचित ढंग से अपनी रक्षा न कर सके इन आक्रमण को करने वाले में सबसे पहला महमूद गजनवी था |
800 ई. से 1200 ई. तक दक्षिण भारत के राज्य – दक्षिण प्रायद्वीप के राज्यों में राष्ट्रकूट राज्य सबसे अहिक महत्वपूर्ण राज्य था, जिसने गंगा की घाटी के एक भाग पर विजय प्राप्त करने का प्रयत्न किया किन्तु राष्ट्रकूटों को दक्षिण के शक्तिशाली चोल शासको की चुनौती का सामना करना पड़ा |
ईसा की ग्यारहवी शताब्दी में चोलों का दक्षिण भारत में सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था. उन्होंने पल्लवों को पराजित कर शक्ति अर्जित की |
चोल शासक – विजयालय ने (846-871) चोल वंश की स्थापना की तथा इसने तंजौर को जीता |
परान्तक प्रथम (907-955) ने पाण्ड्य राज्य को जीता और ‘मदुरैकोंणवन’ की उपाधि धारण की |
परान्तक प्रथम को राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वतीय ने पराजित किया |
राजराज प्रथम ने पुनः चोल सत्ता को स्थापित किया राजराज ने नौसेना की शक्ति के महत्व को समझा उसने लंका और मालद्वीप नामक द्वीपों पर आक्रमण किया |
सामुद्रिक विजय का उद्देश्य आर्थिक भी था. राजराज अरब व्यापारियों के पश्चिम एशिया से होने वाले व्यापर पर आधिपत्य करना चाहता था. परिणामस्वरूप पश्चिम एशिया से होने वाले व्यापर से प्राप्त धन चोल साम्राज्य में आने लगा |
राजराज का पुत्र राजेन्द्र पिता से भी अधिक महत्वकांक्षी था, उसने प्रथम अभियान पूर्वी भारत के लिए व दूसरा अभियान दक्षिण पूर्व एशिया के लिए था. भारत के व्यापारियों को दक्षिण पूर्व एशिया से व्यापर करने के लिए मोलक्का की जलसन्धि से गुजरना पड़ता था. उस समय इस पर श्री विजय का अधिकार था. श्री विजय राज्य के अंतर्गत मलाया प्रायद्वीप और सुमात्रा का द्वीप था अतः इस पर विजय प्राप्त करने से चोल राज्य की आय में वृध्दि हुई |
चोल राज्य में राजा सबसे अधिक शक्तिशाली था |
मंडलम – चोल राज्य का प्रान्तों में विभाजन किया गया था, जिनको मंडलम कहते है |
वलनाडु – प्रत्येक मंडलम को कई वलनाडू (जिला) में बाँट दिया गया था |
चोल राज्य की राजधानी तंजौर थी. राजेन्द्र प्रथम ने गंगईकोंड-चोल्पुरम को राजधानी बनाया था |
चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता स्वायत शासन थी. गाँव में शासन ग्राववासियों के द्वारा किया जाता था |
उर या सभा – गाँव वालों की एक ग्राम परिषद होती थी जिसको उर या सभा कहते थे |
उर ग्राम प्रशासन की सुविधा के लिए सभा कई छोटी समितियों में बाँट दिया जाता था, जैसे तालाब समिति
भूमिकर और व्यापार कर चोल राज्य की आय के प्रमुख साधन थे |
समाज में ब्राह्मण और व्यापारी का बहुत सम्मान था |
ब्रह्देय- ब्राह्मणों को उपहार में दी गई बिना लगान की भूमि |
मणिग्रामम – व्यापार मंडल का नाम
द्रविड़ शैली का सर्वोत्तम नमूना तंजौर का भव्य शैव मंदिर राजराजेश्वर या ब्रह्दिश्वर है, जिसका निर्माण राजराज प्रथम के काल में हुआ था |
गन्गैकोंड चोलपुरम के मंदिर का निर्माण राजेन्द्र प्रथम ने करवाया था |
यह सभी वैकल्पिक प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओ की दृष्टि से महत्वपूर्ण है इनका अध्यन करे इनसे विकल्प बन सकते है |
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