मौर्यकाल
चन्द्रगुप्त मौर्य (321 से 298 ई.पू.) – चन्द्रगुप्त मौर्य, मौर्य वंश का संस्थापक था | उसने मगध के अंतिम नन्द वंश शासक घनानंद को पराजित कर मौर्य वंश की स्थापना की थी. इस कार्य में विष्णुगुप्त (चाणक्य या कौटिल्य) ने चन्द्रगुप्त की सहायता की थी. रूद्र दामन के जूनागढ़ अभिलेख में चन्द्रगुप्त नाम का उल्लेख मिलता है यूनानी इतिहासकारों में जस्टिन एन्ड्रोकोट्स नाम से सम्बंधित किया |
चन्द्रगुप्त ने सबसे पहले भारत की पश्चिमोत्तर सीमा को यूनानियों के कब्जे से मुक्त किया | 305 ई.पू. के लगभग में सेल्यूकस के साथ उसका युध्द हुआ चन्द्रगुप्त इस युध्द में विजयी हुआ एवं दोनों के बीच वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित हुए | सेल्यूकस ने काबुल, कांधार एवं हेरात चन्द्रगुप्त को सौंप दिया जिससे मौर्य साम्राज्य का विस्तार आफगानिस्तान तक हो गया | सेल्यूकस ने मेगस्थनीज नामक एक राजदूत भी चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा |
चन्द्रगुप्त मौर्य ने भारत में सबसे पहले केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था लागु की उसके प्रशासन का वितरण कौटिल्य के “अर्थशास्त्र” में मिलता है उसके शहरी प्रशासन एवं सैनिक प्रशासन की जानकारी मेगस्थनीज की इंडिका से होती है |
अपने शासन के अंतिम चरण में चन्द्रगुप्त मौर्य ने भद्रबाहू से जैनधर्म की दीक्षा ग्रहण की तथा मैसूर, कर्नाटक के श्रवणबेलागोला में स्थित चन्द्रगिरी पहाड़ी पर उपवास करके अपना शरीर त्याग दिया |
बिन्दुसार (298 ई.पू. से 272 ई.पू.) – 298 ई. पू. में चन्द्रगुप्त के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार गद्दी पर बैठा | यूनानी उसे अमित्रोकेट्स (अमित्रधात अर्थात शत्रु का नाश करने वाला) कहते थे | बिन्दुसार के शासनकाल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात थी – यूनानी शासकों से संबंधों का जारी रहना संभवतः सीरिया के सेल्युसिद सम्राट एंटियोकस प्रथम से उसका सम्पर्क था |
स्ट्रैबो के अनुसार , एंटियोकस प्रथम ने अपना राजदूत डायमेकस बिन्दुसार के दरबार में भेजा था प्लिनी के अनुसार, टोल्मी फिलाडेल्फस द्वितीय ने डायोनिमस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा था
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