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गुप्तोत्तर काल के प्रमुख राजवंश - राष्ट्रकूट वंश, चालुक्य वंश एवं पल्लव वंश


गुप्त्तोतर काल 

राष्ट्रकूट वंश, चालुक्य वंश एवं पल्लव वंश



राष्ट्रकूट वंश - चालुक्यो के पतन के बाद आठवी शाताब्दी के अंत में राष्ट्रकूटों के नरेश दन्तिदुर्ग ने अपनी सवतंत्र सत्ता स्थापित कर मान्यखेत को अपनी राजधानी बनाया कृष्ण प्रथम, गोविन्द द्वितीय, गोविन्द तृतीय तथा अमोघवर्ष प्रथम आदि इस वंश के प्रमुख शासक थे |
गोविन्द तृतीय इस वंश के प्रमुख शासको में से एक था, जिसने विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की. कृष्ण तृतीय इस वंश का अंतिम महान शासक था. 973 ई. में चालुक्य राजा तैलप द्वतीय ने राष्ट्र्कूटो के राज्य पर अपना अधिकार कर लिया. अमोघवर्ष प्रथम द्वारा लिखित कविराजमार्ग तथा रत्न्मालिका इस समय के महत्वपूर्ण ग्रन्थ थे इसके अतिरिक्त इसी काल की अमोघवृति मुख्य साहित्यिक कृति है. जिन्सेने, शक्तायन विरार्चा इस काल के उच्च कोटि के लेखक, कवि एवं दार्शनिक थे. कृष्ण प्रथम के समय में निर्मित एलोरा का कैलाश मंदिर इस काल की स्थापत्य कला का सर्वोत्तम उदाहरण है |

चालुक्य वंश दक्षिण भारत में चालुक्य राजवंश की शाखाएँ थी –
(1) कल्याणी के चालुक्य 
(2) वातापी के चालुक्य 
(3) वेंगी के चालुक्य

(1) कल्याणी के चालुक्य (933-1190 ई.) – जिन चालुयकवंशी नरेशों ने हैदराबाद राज्य स्थित कल्याण को राजधानी बनाया, वे कल्याणी के चालुक्य के नाम से प्रशिध हुए. तैलप प्रथम, तैलप द्वतीय, विक्रमादित्य, सोमेश्वर प्रथम, सोमेश्वर द्वितीय, विक्रमादित्य षष्ठ, सोमेश्वर तृतीय तथा तैलप तृतीय आदि इस वंश के मुख्य शासक थे. लकुंडी का काशी विश्वेश्वर का मंदिर तथा इत्त्गी में महादेव मंदिर कला के कुछ सुंदर उदाहरण है |

विक्रमादित्य षष्ठ – इस वंश का सर्वाधिक प्रतापी राजा था प्रसिद्ध कश्मीरी कवि बिल्हण इसी के दरबार का अमूल्य रत्न था. इसी समय विज्ञानेश्वर ने हिन्दू कानून की प्रसिध्द पुस्तक मिताक्षरा की रचना की थी | तैलप तृतीय कल्याणी के चालुक्य वंश का अंतिम शासक था |

(2) वातापी के चालुक्य (535-753 ई.) – जिन चाल्युकों ने बीजापुर स्थित वातापी को अपनी राजधानी बनाया वे वातापी के चालुक्य कहलाये. जयसिंह नामक शासक ने इस वंश की नीव डाली. पुलकेशिन प्रथम, कीर्तिवर्मन, पुलकेशिन द्वितीय विक्रमादित्य, विजयादित्य आदि इस वंश के प्रमुख शासक हुए. वातापी स्थित मंगलेश का मंदिर इस काल की कला का उत्कृष्ठ उदाहरण है |
इसके अतिरिक्त मेंगुली का शिव मंदिर तथा एहोल का विष्णु मंदिर तो अविस्मरणीय है. रवि कीर्ति चालुक्यो के दरबार का महान कवि था. पुलकेशिन द्वितीय (610-642 ई.) इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था. उसने उत्तरी भारत के सम्राट हर्ष को नर्मदा के तट पर बुरी तरह पराजित किया. पुलकेशिन द्वितीय के उत्तराधिकारी अयोग्य थे, अतः परिस्थितियों का लाभ उठाकर राष्ट्रकूटो ने इस वंश का अंत कर दिया |

(3) वेंगी के चालुक्य (615 से 1076 ई.) – जिन चालुक्यों ने आंध्रप्रदेश स्थित वेंगी को अपनी राजधानी बनाकर शासन किया वे वेंगी के चाल्युक कहलाये. विष्णुवर्धन इस राजवंश का संस्थापक था. जयसिंह प्रथम इन्द्र्वर्धन, विष्णुवर्धन द्वितीय, जयसिंह द्वितीय कोकिल, विष्णुवर्धन तृतीय आदि इस वंश के प्रमुख शासक हुए.
विजयादित्य इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था.

पल्लव वंश – इनकी राजधानी कांची या कांचीपुरम में थी. इस राजवंश की स्थापना वप्पदेव के द्वारा हुई थी, इस राजवंश में सिंह विष्णु (575-600 ई.) एक प्रमुख राजा हुआ. महेंद्र वर्मन प्रथम (600-630 ई.) पुलकेशिन द्वितीय से पराजित हुआ. इसने मत्तविलास ‘प्रहसन’ नामक एक पुस्तक की रचना भी की थी |



पुष्यभूति वंश, आंध्र सातवाहन वंश एवं चोल राजवंश के बारे में पढ़े
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