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खगोल विज्ञान - अन्तरिक्ष, तारामंडल, सौरमंडल


खगोल विज्ञान



अन्तरिक्ष - 

ब्रह्माण्ड के अध्ययन करने वाले विज्ञान को नक्षत्र विज्ञानं या खगोल शास्त्र कहते है

ब्रह्माण्ड कई अरब मंदाकिनी से मिलकर बना है जो की विशाल तारों का विस्तृत समूह है

मंदाकिनियाँ प्रायद्वीपीय ब्रह्माण्ड के नाम से भी जानी जाती है

मंदाकिनियाँ तीन प्रकार की होती है -
(1) कुंडलनीय
(2) दीर्घवृताकार
(3) अनियमित

मंदाकिनियों को आकाश गंगा भी कहते है जिसमे हमारा सौर-मंडल समावेशित है

आधुनिकतम ज्ञात मंदाकिनियों ड्वार्फ मन्दाकिनी का पता चला है

मन्दाकिनी (गैलेक्सी) का द्रव्यमान तारो के कारण होता है

नक्षत्र का निर्माण तारों के द्वारा होता है

तारामंडल -

अन्तरिक्ष में स्थित हाइड्रोजन गैस तथा धुल के द्वारा निहारिका का निर्माण होता है

निहारिका तारो की जन्मस्थली है

तारा गैस का चमकता हुआ गोला होता है जो नाभिकीय संलयन के परिणामस्वरूप ऊष्मा तथा प्रकाश उत्पन्न करता है

इन निहारिका से उत्पन्न होते है और प्रायः हाइड्रोजन और हीलियम गैस से बने होते है

सूर्य जैसे तारे के विकास की अंतिम आवस्था में रेड जाएंट का निर्माण उस समय होता है जब केंद्र में संचित हाइड्रोजन गैस समाप्त हो जाती है

ये ठन्डे, अस्पष्ट और छोटे तारे होते है, जो सूर्य के द्रव्यमान और व्यास के लगभग दसवे हिस्से के बराबर है, जैसे प्रोक्सिमा, सेंटोरी और बरनार्ड त्तरे रेड डवाफ़र्स है

ब्लैक होल (कृष्ण विवर) – बहुत छोटे, गर्म तारे होते है ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक होता है की इनसे कुछ भी नही बच सकता है, यहाँ तक की प्रकाश भी नही

प्रसिध्द भारतीय भौतिकशास्त्री एस.चंद्रशेखर ने ब्लैक होल की रचना से सम्बंधित चंद्रशेखर लिमिट नामक सिध्दांत प्रस्तुत किया

प्रथ्वी का सबसे निकटतम तारा सूर्य है

हमारे सौर मंडल का निकटतम तारा अल्फ़ा सेंटोरी तथा प्रोक्सिमा है

प्रकश वर्ष (Light Year) – यह खगोलीय इकाई है तथा पारसेक दूरी नापने की इकाई है

सौरमंडल -

सूर्य नौ गृह तथा अपने उपग्रहों के साथ लघु ग्रह,. धूमकेतु, ग्रहों के साथ धुल कण तथा प्लाज्मा जो की विद्धुत आवेशित गैस होती एक साथ मिलकर सौरमंडल बनाती है

सौरमंडल के सभी पदार्थों में सूर्य का अनुपात 99.85% है

सूर्य के केन्द्रीय भाग में स्थित नाभिकीय संलयन उसकी शक्ति का स्त्रोत  है

सूर्य के चमकते हुए भाग को फोटोस्फेयर कहते है

लगभग यह लाल रंग का क्रोमोस्फेयर है और इसके बाहर केरोना है. केरोना सूर्यग्रहण के दौरान दिखाई देता है

सूर्य की सतह (उपरी हिस्सा) लगातार बदलती रहती है चमकने वाले धब्बे प्लैग्स कहे जाते है और काले धब्बे को  सूर्य धब्बे कहते है ये धब्बे प्रायः बनते और गायब होते रहते है


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1 comment:

  1. Nice कृपया मेरे ब्लॉग में भी आएं।

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